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फूलन देवी सामाजिक न्याय और महिला सशक्तिकरण की प्रतीक: चौ.लौटनराम निषाद


लखनऊ। अंतरराष्ट्रीय पटल पर दस्यु सुंदरी व  बैंडिट क्वीन नाम से ख्यात फूलन देवी का असली नाम फुलवा था। मशहूर टाइम पत्रिका ने विश्व की 16 क्रांतिकारी महिलाओं में फूलन देवी को चौथे स्थान पर रखा।फूलन देवी का जन्म जालौन जिला के कालपी थानांतर्गत शेखपुर गुढा का पुरवा में 10 अगस्त,1963 को हुआ था। इनके पिता का नाम देवीदीन मल्लाह व माता का नाम मुला देवी है। 4 बहनों में फूलन तीसरे नम्बर पर थीं और इनका एक छोटा भाई है शिवनारायण निषाद जो मध्यप्रदेश पुलिस में मुलाजिम है। 11 साल की कम उम्र में फूलन देवी की शादी कानपुर देहात के महेशपुर गाँव में 30 वर्षीय पुत्तीलाल निषाद के साथ हुई थी। पति व ससुरालियों की प्रताड़ना से फूलन भागकर अपने मायके आ गयी। इनकी मां मुलादेवी ने फूलन को उसकी  मौसेरी बहन के यहां त्योंगा गाँव भेज दिया। यहां पर ग़ाज़ीपुर जनपद के जमुआंव गांव निवासी कैलाश मल्लाह का आना जाना था,जो जमुना के किनारे खरबूजा तरबूजा की खेती करता था। मौसेरी बहन के यहां फूलन की मुलाकात कैलाश से हुई। डकैत बाबू गुजर ने फूलन को बीहड़ में उठा ले गया। फूलन के साथ अत्याचार को देखकर विक्रम मल्लाह ने उसकी हत्या कर गिरोह का सरदार बन गया। लालाराम व श्रीराम ने फूलन को उठाकर ठाकुरों के गांव बेहमई ले गए और 15 वर्ष की उम्र में 22 ठाकुरों ने 22 दिन तक लगातार बलात्कार किया।नङ्गा कर कुँए से पानी भरवाया।


फूलन देवी के जीवन की 10 सच्चाइयों को यहाँ सामाजिक कार्यकर्ता चौ.लौटनराम निषाद बयां कर रहे हैं।-

    किसी ज़माने में दहशत का दूसरा नाम। कम उम्र में शादी, फिर गैंगरेप और फिर इंदिरा गांधी के कहने पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के समक्ष 12 फरवरी, 1983 को ग्वालियर में 10 हजार समर्थकों के साथ आत्मसमर्पण कीं।
इस दस्यु सुंदरी के डकैत बनने की पूरी कहानी किसी के भी रोंगटे खड़े कर सकती है। यूं तो फूलन देवी पर आपने बहुत कुछ पढ़ा, जाना, सुना होगा,लेकिन आज हम आपको फूलन देवी के बंदूक थामने के पीछे की कहानी बता रहे हैं। जानिए ‘बैंडिट क्वीन’ से सांसद बनने तक का सफरनामा…….

1- 10 अगस्त,1963 को उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव गुढ़ा का पुरवा में जन्मी यह महिला शुरू से ही जातिगत भेदभाव का शिकार रही। लेकिन 11 साल की उम्र में फूलन की जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया।

2- 11 साल की उम्र में फूलन देवी को गांव से बाहर भेजने के लिए उसके चाचा मैयादीन मल्लाह ने फूलन की शादी एक 30 वर्षीय प्रौढ़ जो पहले से शादीशुदा आदमी था,महेशपुर-कानपुर देहात के पुत्तीलाल निषाद से करवा दी। फूलन इस उम्र में शादी के लिए तैयार नहीं थी। शादी के तुरंत बाद ही फूलन देवी दुराचार का शिकार हो गई। जिसके बाद वो वापस अपने घर भागकर आ गई। घर आकर फूलन देवी अपने पिता के साथ मजदूरी में हांथ बंटाने लगी।

3- महज 15 साल की उम्र में फूलन देवी के साथ एक बड़ा हादसा हो गया, जब गांव के ठाकुरों ने उनके साथ गैंगरेप किया। इस घटना को लेकर फूलन न्याय के लिए दर-दर भटकती रही, लेकिन कहीं से न्याय न मिलने पर फूलन ने बंदूक उठाने का फैसला किया और वो डकैत बन गई।

4- फूलन देवी के साथ ये हादसा यही ख़त्म नहीं हुआ, इंसाफ के लिए दर-दर भटकती इस महिला के गांव में कुछ डकैतों ने हमला किया। इसके बाद डकैत फूलन को उठाकर ले गए और कई बार रेप किया। यहीं से बदली फूलन की जिंदगी, और फूलन की मुलाकात विक्रम मल्लाह से हुई। फिर दोनों ने मिलकर डाकूओं का अलग गैंग बनाया।

5-फिर फूलन ने अपने साथ हुए गैंगरेप का बदला लेने की ठान ली। और 1981 में 22 सवर्ण ठाकुर जाति के लोगों को एक लाइन में खड़ा कराकर गोलियों से छलनी कर दिया। जिसे बेहमई कांड के नाम से जाना जाता है।
इसके बाद पूरे चंबल इलाके में फूलन का खौफ पसर गया। सरकार ने फूलन को पकड़ने का आदेश दिया, लेकिन यूपी और मध्य प्रदेश की पुलिस फूलन को पकड़ने में नाकाम रही।

6- बाद में तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से 1983 में फूलन देवी से आत्मसमर्पण करने को कहा गया। जिसे फूलन ने अपनी शर्तों पर सहमति के बाद मान लिया। क्योंकि यहां फूलन के साथ मजबूरी थी, उसका साथी विक्रम मल्लाह पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था।

7- फूलन ने यूं ही आत्मसमर्पण नहीं किया।उसने सरकार से अपनी शर्तें मनवाई, जिनमें पहली शर्त उसे या उसके सभी साथियों को मृत्युदंड नहीं देने की थी। फूलन की अगली शर्त ये थी कि उसके गैंग के सभी लोगों को 8 साल से अधिक की सजा न दी जाए। इन शर्तों को सरकार ने मान लिया था।

8- लेकिन 11 साल तक फूलन देवी को बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़ा। इसके बाद 1994 में आई बसपा-समाजवादी पार्टी की सरकार ने फूलन को जेल से रिहा किया। निषादों के मशहूर नेता बाबू मनोहरलाल जी सपा-बसपा गठबंधन सरकार में पशुपालन व मत्स्य मंत्री के साथ राष्ट्रीय निषाद संघ के प्रदेश अध्यक्ष भी थे। 20 जनवरी,1994 को लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में निषाद रैली का आयोजन किया गया जिसमें लाखों की भीड़ उमड़ पड़ी।तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे। इस रैली में फूलन की बड़ी बहन रुक्मिणी देवी व मां मुला देवी भी आई थी,जो फूलन की रिहाई की मांग की अपील समाज से कर रही थीं।
        जब मुलायम सिंह मंच पर आए तो उन्होंने उमड़ी भीड़ को देखकर कहे कि आज निषाद समाज जो मांगेगा,देना पड़ेगा।पर जनता जिस मांग को लेकर कोने कोने से आई थी,अपनी सामाजिक आरक्षण व अधिकारों की मांग को भूलकर – “फूलन देवी को रिहा करो,फूलन देवी को रिहा करो” के नारे लगाने लगी। नेता जी ने कहा-फूलन के सारे मुकदमे वापस, फूलन को रिहा करायेंगे ।
        बतौर मुख्यमंत्री नेताजी ने फूलन के सभी 46 मुकदमों को वापस ले लिया,जो उत्तर प्रदेश के थानों में दर्ज थे। प्रदेश सरकार ने 20 फरवरी,1994 को ग्वालियर कारगर से रिहा करा दिया। पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत ने एकलव्य सेना बनाकर फूलन को उसका अध्यक्ष बना दिया। और इसके दो साल बाद ही फूलन को समाजवादी पार्टी से चुनाव लड़ने का ऑफर मिला और वो मिर्जापुर-भदोही सीट से जीतकर सांसद बनीं और दिल्ली पहुंच गईं। उन्होंने भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त पहलवान को पटकनी दी थीं।
1999 में एक बार फिर उन्होंने भाजपा के वीरेन्द्र सिंह को हराकर दोबारा संसद में पहुंची।

9- इसके बाद साल 2001 फूलन की जिंदगी का आखिरी साल रहा। इसी साल खुद को राजपूत गौरव के लिए लड़ने वाला योद्धा बताने वाला शेर सिंह राणा ने दिल्ली में फूलन देवी के 44 अशोका रोड स्थित सांसद आवास के गेट पर 25 जुलाई ,2001 को नागपंचमी के दिन उनकी हत्या कर दी। हत्या के बाद राणा का दावा था कि ये 1981 में सवर्णों की हत्या का बदला है।

10- इस हत्या को कई तरह से देखा जाता है। कभी इसमें राजनीतिक साजिश की बू नजर आती है,तो कभी उसके पति उम्मेद सिंह पर भी फूलन की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप लगता है। फूलन देवी पर फिल्म बैंडिट क्वीन भी बन चुकी है। जिसे शेखर कपूर ने डायरेक्ट किया था। इस फिल्म पर फूलन को आपत्ति थी। जिसके बाद कई कट्स के बाद फिल्म रिलीज हुई। लेकिन बाद में सरकार ने इस फिल्म पर बैन लगा दिया।

फूलन देवी की हत्या के पीछे सामंती जातियों का हाथ रहा है। लौटनराम निषाद ने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि सन 2000 में हम फूलन देवी को 3 दिन के लिए मुम्बई लिवा गए,बांद्रा, बोरीवली व भिवंडी में उनका कार्यक्रम कराये।जून,2000 में महाराष्ट्र कोली समाज के डॉ. जी.के.भांजी, विजय वर्लीकर, बिनोद किसन कोली,प्रकाश बोबड़ी द्वारा खार डांडा में कोली-निषाद सम्मेलन में आमंत्रित किया गया,पर फूलन देवी इस कार्यक्रम में नहीं गयीं। जिसमे उनके व मेरे भाई-बहन के रिश्ते में कड़वाहट आ गयी।

कार्यक्रम में न आने से मुझे बहुत कष्ट हुआ और फूलन से बिल्कुल दूरी बना लिया। अचानक फूलन देवी का मेरे यहाँ 23 जुलाई,2001 को फूलन जी का फोन आया,तो वह बड़े दुखी मन से कहा-भैया,नाराज़गी छोड़ दो,अमर सिंह,रंगनाथ मिश्रा व ठाकुर हमे मरवा देंगे। भैया,आरक्षण की लड़ाई लड़ते रहना। क्या पता कि 2 दिन बाद ही बहन की हत्या हो जाएगी। फूलन के वह अंतर्मन के शब्द थे।
         बनारस में मैं स्नातक दूसरे वर्ष का छात्र था। हमने अखबारों में बयान जारी कर कहा-जब खूंखार डकैत व हत्यारे तहसीलदार सिंह,मोहर सिंह,दर्शन सिंह के मुकदमे वापस कर उनके पुनर्वास की व्यवस्था कर दी गयी,तो फूलन देवी की रिहाई क्यों नहीं? अखबारों में यह खबर प्रमुखता से छपी। मैं बार बार यह मुद्दा उठाने लगा। धरना प्रदर्शन में भी यह मांग सम्मिलित ज्ञापन में रखने लगा। 1993 में मेरे द्वारा मुद्दा उठाया गया कि-जो फूलन देवी को टिकट देगा,निषाद समाज उसका साथ देगा। दूसरे ही दिन पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह जी ने घोषणा किये कि-फूलन देवी को जनता दल से चुनाव लड़ाएंगे।
       नेताजी माननीय मुलायम सिंह यादव जी फूलन देवी के धर्मपिता व जीवनदान देने वाले हैं। उन्होंने फूलन को ग्वालियर कारगार की जिल्लत व यातना भरी नरक की ज़िंदगी से निकाल कर सम्मान की ज़िंदगी जीने की राह दिए। सपा के चुनाव चिन्ह पर मिर्ज़ापुर-भदोही संसदीय क्षेत्र से चुनाव जीताकर संसद में पहुँचाये। उस समय सामन्तियों द्वारा क्या क्या नहीं कहकर गाली दी गयी।भाजपा के इशारे पर चलने वाला निषाद पार्टी के अध्यक्ष द्वारा नेताजी को फूलन देवी की हत्या का साज़िशकर्ता बताकर दुष्प्रचार किया गया।
       जब फूलन की हत्या हुई,उस समय तो केंद्र में भाजपा की सरकार थी और फूलन की हत्या संसद की कार्यवाही में भाग लेकर भोजनावकाश के समय अशोका रोड स्थित सांसद निवास के गेट पर शेर सिंह राणा ने किया। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सरकार थी व राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी को हत्या की सीबीआई जांच करानी चाहिए थी। आखिर एक सांसद व अंतर्राष्ट्रीय पटल पर नाम अंकित कराने वाली फूलन की हत्या को इतने हल्के में क्यों लिया गया, भाजपा ने फूलन हत्या कांड की सीबीआई जांच क्यों नहीं कराया? ताकि जनता के सामने असलियत आती।इसलिए नहीं कराया कि इसमें भाजपा के लोगों का हाथ।यह इसलिए प्रमाणित है कि जब 2014 में भाजपा की सरकार बनी और राजनाथ सिंह गृहमंत्री बने।इसके बाद शेरसिंह राणा को तिहाड़ जेल से पेरोल पर छोड़ा गया,जो अब तक फिर वापस नहीं गया।भाजपा ने मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव-2019 में शेरसिंह राणा को स्टार प्रचारक बनाया था।

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