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देश आजाद के बाद भी हमारे हालात रेलवे में ठीक वैसे ही जैसे पूर्व में समाज में पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों सौतेला व्यवहार ट्रैक मैन




न्यूज़ एजेंसी 

लखनऊ उत्तर प्रदेश रेलवे की अर्थव्यवस्था और रेलवे के चलने वाली ट्रैक मैनो की वही हाल है जैसे पूर्व में अंग्रेज शासन में किया जा रहा था लगातार जिस तरीके से आजादी के बाद भी रेलवे विभाग के रीड की हड्डी माने जाने वाले ट्रैकमैन की आवाजों को कोई नहीं सुनता भारतीय रेलवे में इंजीनियरिंग विभाग में एक कर्मठ कर्मचारी हूं, जिसका नाम पहले गैंगमैन, बारहमासी से समयानुसार बदलकर ट्रैकमैन से वर्तमान में ट्रैकमेन्टेनर पड़ा है लेकिन ड्यूटी व कार्य वही है, हमारे हालात रेलवे में ठीक वैसे ही हैं जैसे पूर्व में समाज में पिछड़ों, दलितों व आदिवासियों की थी, नाम बदलने से सिर्फ कागजों में लिखने में फर्क आया है। 

लेकिन विभागीय बोलचाल में आज भी हम गैंगमेन ही है। हम ट्रैकमैन्टेनर की ड्यूटी कहने को आठ घंटे की है पर प्रतिदिन लाइनों पर हमेशा औसतन 20 से 25 किलोग्राम वजन के साथ 10 से 12 घंटे काम करना पड़ता है, चाहे चिलचिलाती धूप /गर्मी हो या मूसलाधार/ बारिश या कपकापाती/ ठंडी हो सभी विषम परिस्थितियों में लाइनो पर दिन रात अपनी ड्यूटी पुरी कर्मठता के साथ निभानी पडती है। हम कर्मचारी पटरियों के बीच फैली गन्दगी को हाथों से हटाते और पटरियों की मरम्मत करते हैं। साथ में वजनदार लोहे का सब्बल लेकर 10 से 15 किलोमीटर रोज़ चलनापड़ता है।

आप सोचें इंसान तो हम भी हैं, अस्पतालों के नर्स को संक्रमण भत्ता मिलता है, लेकिन हमको नहीं।, 200 से 300 ट्रैक मैन डयूटी के दौरान प्रत्येक वर्ष ट्रैन से कट कर परलोक सिधार जाते हैं, ड्यूटी के दौरान अधिकारियों की रोज़ गाली सुनने के साथ साथ, अपमान जनक व्यवहार सहना पड़ता है, यहाँ तक कि दूसरे विभाग वाले भी कभी कभी अपमानित करते हैं और हम चुप चाप उस अपमान और बेइज्जती का घूंट पीकर रह जाते हैं। कुछ लोग तो ऐसे बात करेंगे जैसे- हमारा कोई वजूद नहीं है, विरोध करो तो सस्पेंड, चार्जशीट और ट्रांसफर की धमकी दी जाती है। सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ट्रैकमेन्टेनर का कोई प्रमोशन नहीं जिन्दगी भर पटरी पर ही दौड़ते रहना है एक ही परीक्षा देकर पास हुए हम जैसे- ग्रुप डी के कर्मचारी, जो अन्य विभागों में हैं 3 से 4 साल में विभागीय परीक्षा LDCE की सुविधा मिलने से स्टेशन मास्टर, गुड्स गार्ड, टी.टी., टीसी और क्लर्क आदि अन्य पदों पर चले जाते हैं, लेकिन हम चाहे जितने पढ़े लिखे हो इंजीनियरिंग विभाग में पहुंचते ही अनपढ़ मान लिया जाते हैं। चाहे ट्रांसफर की प्रक्रिया हो सिर्फ परेशान किया जाता है की डायरेक्ट ट्रांसफर कोई भी जा सकता हम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है साहब हम जाये कहां परीक्षा में शामिल नहीं होने दिया जाता। ऐसा लगता है ये नौकरी नहीं है, काला पानी की सज़ा है। पता नहीं आप ध्यान देंगे या नहीं पर आपसे उम्मीद बहुत है।

                 

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