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हज़रत मख़दूम अशरफ़ का मनाया गया उर्स-ए-पाक कुल शरीफ की रस्म अदा

 


गोरखपुर, उत्तर प्रदेश सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर, मदरसा जियाउल उलूम पुराना गोरखपुर गोरखनाथ व मदरसा दारूल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार में हज़रत मख़दूम सैयद अशरफ़ जहांगीर सिमनानी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। महफिल सजी। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात व मनकबत पेश की गई। कुल शरीफ की रस्म अदा कर फातिहा ख़्वानी हुई।सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद में मौलाना अली अहमद ने कहा कि हज़रत मख़दूम अशरफ़ की पैदाइश 708 हिजरी में सिमनान (ईरान) में हुई। आपके वालिद का नाम सुल्तान सैयद इब्राहीम नूर बख्शी व वालिदा का नाम बीबी खदीजा बेगम था। आपके वालिद सिमनान के सुल्तान थे। आप सात साल की उम्र में हाफ़िज-ए-क़ुरआन हुए। आप किरात के माहिर थे। आपने बड़े-बड़े उलमा-ए-किराम से तालीम हासिल की। पंद्रह साल की उम्र में आपके वालिद के इंतकाल के बाद आप सिमनान के सुल्तान बने। आप बहुत आदिल सुल्तान थे। आपने अपनी वालिदा से इजाज़त लेकर हिन्दुस्तान की तरफ अपना सफर शुरू किया।आप हज़रत शैख़ अलाउल हक पंडवी अलैहिर्रहमां के मुरीद व खलीफा हैं। आपने अपने शैख़ से तरीक़त, हक़ीक़त व मारफ़त का इल्म हासिल किया। आपने बहुत सारी किताबें लिखीं। आपसे अशरफी सिलसिला जारी है।

मदरसा जियाउल उलूम में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि अल्लाह के वलियों ने अपना पूरा जीवन अल्लाह, रसूल और इंसानियत की ख़िदमत में गुजार कर दीन व दुनिया दोनों में अपना नाम रोशन कर लिया। उन्हीं वलियों में एक महान वली का नाम हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहांगीर सिमनानी है। कुछ समय हुकूमत करने के बाद आप सिमनान छोड़कर हिन्दुस्तान आ गए और मोहब्बत, भाईचारा व एक दूसरे की मदद की तालीम दी। 28 मुहर्रम 808 हिजरी में आपने दुनिया को अलविदा कहा। उप्र के किछौछा शरीफ, अम्बेडकर नगर में आपका मजार है। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान, खुशहाली व तरक्की की दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों में शीरीनी बांटी गई।

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