पित्ताश्मरी के कारण बाईल डक्ट में पत्थरी फँसे होने के कारण वहाँ स्राव इकट्ठा होने लगता है जो शोथ का कारण बनता - बी.पी.यादव
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अग्न्याशय शोथ(Pancreatitis)...
अग्न्याशय(Pancreas) एक उभयस्रावी ग्रंथि(अंतः व बहिः)है जो अमाशय के पीछे पक्वाशय से जूड़ी रहती है। इसके दो मुख्य कार्य है
1.पाचन एंजाइम्स का स्राव करना। ये एंजाइम्स मुख्य रूप से वसा व प्रोटीन के पाचन में सहायता करते हैं।
2.इंसूलिन व ग्लूकागोन का रक्त में स्राव। ये दोनों ग्लूकोज के शरीर में चपापचय में मदद करते हैं व शरीर में ग्लूकोज के खपत को भी नियंत्रित करते हैं, इसके अतिरिक्त ग्लूकोज के ऊर्जा में परिवर्तन को भी नियंत्रित करते हैं। प्रायः अग्नाशय शोथ को मात्र अल्कोहल के सेवन से संबंधित ही माना जाता है, परंतु अस्सी प्रतिशत व्यक्तियों में इसका कारण पित्ताश्मरी,दस प्रतिशत में मदिरा का अधिक सेवन,दस प्रतिशत में इसके कारणों का पता ही नहीं चल पाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्रायः इसे एक सामान्य पेट दर्द मानकर इलाज में कोताही की जाती है।अग्नाशय शोथ के दो प्रकार होते हैं
तीव्र-इस रोग का आक्रमण अचानक ही होता है व प्रभाव कई सप्ताह तक रहता है।
इसके सामान्य कारण
1.पित्ताश्मरी के कारण बाईल डक्ट में पत्थरी फँसे होने के कारण वहाँ स्राव इकट्ठा होने लगता है जो शोथ का कारण बनता है।
2.मदिरा के अत्यधिक सेवन से अग्न्याशय पर कार्य का दबाव बढ़ जाता है इससे भी शोथ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
3.यदि शरीर में ट्राईग्लिसराइड व कैल्शियम का स्तर बढ़ जाए।
4.कीटाणु व जीवाणु संक्रमण से।
5.अधिक मात्रा में लम्बे समय तक स्टेरॉइड के सेवन से।
6.पेप्टिक अल्सर के कारण।
7.किसी चोट के कारण।
8.पित्ताशय की शल्य क्रिया के दौरान यदि अग्न्याशय को आघात लगे।
इसके सामान्य लक्षण
1.नाभि के उपरी भाग में पीड़ा, शोथ व उभार।
2.भोजन के पश्चात पीड़ा का बढ़ना।
3.उल्टी होना लगातार।
4.नाड़ी गति तीव्र होना।
5.त्वचा का पीला पड़ना व हल्का ज्वर।
6.साँस लेने में तकलीफ व पीड़ा का अनुभव होना।
7.घबराहट व अनिद्रा।
तीव्र अग्न्याशय शोथ को समय पर पहचान लिया जाए तो इसकी चिकित्सा मात्र तीन से सोलह दिन में पूर्णतया संभव है, परंतु देर होने पर हृदय, फेफड़े व किडनी के क्रिया कलाप बाधित हो सकते हैं।
अब आते हैं जीर्ण अग्न्याशय शोथ
इसका आक्रमण प्रायः तीव्र शोथ के उपचार में विलंब के कारण ही होता है।
इसके सामान्य कारण हैं
1 मदिरा सेवन-पैंतालीस प्रतिशत व्यक्तियों में इसका कारण मदिरा का अधिक मात्रा में लम्बे समय तक सेवन करना है।
2 शरीर में लौह तत्व की अत्यधिक मात्रा में अवशोषण व खपत।
3 एक बार तीव्र शोथ होने के बाद व्यक्ति यदि परहेज में न रहे तो जीर्ण अग्न्याशय शोथ का आक्रमण बार बार होता है।
जीर्ण अग्न्याशय शोथ के सामान्य लक्षण
1 शूल का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरण होते रहना।
2.बदबूदार व अत्यधिक मलावृति।
3.सम्पूर्ण उदर पर शोथ व शरीर में भारीपन महसूस करना।
4.व्यक्ति के वजन में अचानक गिरावट।
5.लम्बे समय तक उदरशूल रहने के पश्चात यदि मधूमेह हो जाए।
जीर्ण अग्न्याशय शोथ में लक्षण कई वर्षों तक उत्पन्न ही नहीं होते हैं।कई बार इसके लक्षण मात्र हल्के पेट दर्द के साथ सामान्य पाचन संबंधी समस्याएं भी होती हैं। यदि व्यक्ति इसकी उपेक्षा करता रहता है तो अंत में समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है।
इसकी पहचान कैसे हो
यदि व्यक्ति सामान्य पेट दर्द की शिकायत लेकर आता है तो चिकित्सक बंधुउसे प्रायः पाचन संबंधी दिक्कत मानकर ही उपचार करते हैं, कई बार चिकीत्सीय सूझबूझ से रोग का शीघ्र निर्धारण मरीज की प्राणरक्षा कर सकता है व अग्न्याशय को अपरिवर्तनीय क्षति से बचा सकता है।
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