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दवाएं बीच में छोडी तो एमडीआर टीबी के मरीज बन गये शक्ति

 


संतकबीरनगर, अगर क्षय रोग की पुष्टि हो तो दवाएं बीच में न छोड़े अन्‍यथा यह टीबी एमडीआर ( मल्‍टी ड्रग रजिस्‍टेंस ) टीबी में बदल सकती है। हैसर क्षेत्र के ऐसे ही एक 54 वर्षीय क्षय रोगी शक्ति सिंह ( बदला हुआ नाम ) ने दवाएं बीच में छोड़ी और एमडीआर टीबी के मरीज हो गए। बाद में एमडीआर टीबी के 11 माह का कोर्स पूरा करने के बाद वह पूरी तरह से स्‍वस्‍थ हैं। 


मई 2021 में जनपद के हैसर बाजार क्षेत्र के शक्ति सिंह ( बदला हुआ नाम ) को अचानक खून की उल्टियां होने लगीं। दो तीन बार खून की उल्टियां हुई तो परिवार के लोग उन्‍हें सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र हैसर बाजार ले गए तो उन्‍हें वहां से जिला मुख्‍यालय भेज दिया गया। जिला चिकित्‍सालय में एनसीडी सेल के चिकित्‍सक डॉ कुमार सिद्धार्थ ने उनकी जांच कराई तो पता चला कि टीबी है।


यह जानकारी होने के बाद डॉ ओझा ने जांच के लिए सेम्‍पल लिए और प्रारम्भिक तौर पर कुछ दवाएं दी। अचानक रात में फिर खून की उल्टियां हुई तो एम्‍बुलेंस से उन्‍हें उनकी बेटी जिला अस्‍पताल ले आई। वहां से उन्‍हें मेडिकल कालेज के लिए रेफर कर दिया गया। मेडिकल कालेज के इमरजेंसी में उनको प्राथमिक उपचार देने के बाद वहीं क्षय रोग अस्‍पताल में भेजा गया। वहां के चिकित्‍सकों ने दो दिन उनका इलाज किया तथा कुछ स्‍वस्‍थ होने पर जिला क्षय रोग आफिस भेजा गया। जिला क्षय रोग विभाग में तब तक उनकी रिपोर्ट आ गयी थी और एमडीआर टीबी की पुष्टि हुई। इसके बाद उन्‍हें बस्‍ती स्थि‍त एमडीआर टीबी सेण्‍टर पर भेजा गया। वहां पर चिकित्‍सकों ने उन्‍हें पांच दिन तक रखा और जब स्थिति सामान्‍य हुई तो वहां से डिस्‍चार्ज किया तथा जिला क्षय रोग अस्‍पताल में उनके लिए एमडीआर टीबी के 11 महीने के कोर्स की शुरुआत की गयी।


टीबी की दवा बीच में कतई न छोड़े


टीबी चैंपियन शक्ति बताते हैं कि वर्ष  2019 में उनकी सांस फूलती थी तथा खांसी आती थी। एक सप्‍ताह बाद बुखार हुआ । इलाज के लिए वह जब सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र हैसर बाजार गए तो एक्‍स – रे तथा जांच के बाद पता चला कि उन्‍हें क्षय रोग हुआ है । वहीं डाट्स सेंटर से उनके क्षय रोग का उपचार शुरु हुआ । निक्षय पोषण योजना के तहत हर महीने 500 रुपए मिलते थे, जिससे वह चना तथा अन्‍य पोषक पदार्थ लेते थे। चार महीने तक दवा खाने के बाद उनकी सारी समस्‍याएं समाप्‍त हो गयीं। इसके बाद वह डाट्स सेंटर से दवा तो लेते थे लेकिन दवा लेना बन्‍द कर दिया। इसी के चलते उनका टीबी एमडीआर में बदला। जब एमडीआर टीबी हो गया तो पूरा परिवार झेलने लगा। वह जीप चलाते थे वह भी रुक गया। बड़ी बेटी की पढ़ाई बाधित हुई। एमडीआर दवाओं का बहुत ही प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था। लगातार सप्‍ताह भर तक कभी पेट खराब रहता था तो कभी उल्‍टी होती थी, रात भर नींद नहीं आती थी । दवाओं के डोज कई बार बदले गए। उन्‍हें शारीरिक परेशानी भी हुई लेकिन दवा नहीं छोड़ी और आज पूरी तरह से स्‍वस्‍थ हैं। मई में अन्तिम जांच रिपोर्ट भी आ गयी है और दवा बन्‍द हो गयी है। रिश्‍तेदारों ने असहयोग किया, लेकिन परिवार उनके साथ रहा।


बेटी निधि बनी पिता का सहारा


शक्ति की बड़ी बेटी निधि जो दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय में पढ़ती हैं वह बताती हैं कि  कोविड के चलते क्‍लास बन्‍द होने पर घर आई थी। वह अपनी मां के साथ उन्‍हें लेकर खलीलाबाद से लेकर गोरखपुर मेडिकल कालेज तक ले गई। दो दिन गोरखपुर मेडिकल कालेज में पिता को लेकर भर्ती रहीं। पूरे दिन उन्‍होने और उनकी मां ने खाना तक नहीं खाया था। उनके गोरखपुर में रहने वाले एक रिश्‍तेदार ने बीमारी के डर से दूरी बना ली और खाना भी लेकर नहीं आए। वह पिता के लिए भोजन की व्‍यवस्‍था करती रहीं। दूसरे दिन सुबह घर से भोजन गया तब उन्‍हें भोजन नसीब हुआ।  इसके बाद एमडीआर चिकित्‍सालय बस्‍ती भेजा गया। घर आने के बाद वह निरन्‍तर चिकित्‍सकों के परामर्श के अनुसार भोजन व दवा की व्‍यवस्‍था करतीं। एमडीआर टीबी के संक्रमण से बचने के लिए परिवार के सभी सदस्‍य मास्‍क लगाते थे तथा उनके सारे कपड़े और बिस्‍तर रोज धो दिया जाता था।

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