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सपा की इज्जत का सवाल है आजमगढ़ लोकसभा का उप चुनाव

 


रिपोर्ट आकाश सिंघम

लखनऊ सपा की इज्जत का सवाल है आजमगढ़ लोकसभा का उप चुनाव"सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव" द्वारा खाली की गई सीट पर हो रहे उपचुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ गई है। सपा की तरफ से कई नाम सामने आए। लेकिन अंत में फैसला हुआ कि इस बार भी नेता जी के भतीजे के नाम पर। समाजवादी पार्टी ने आखिरी समय में सैफई परिवार पर ही दांव खेला है। धर्मेंद्र यादव सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के भतीजे हैं। वो एक बार मैनपुरी और दो बार बदायूं से सांसद रह चुके हैं।आजमगढ़ संसदीय सीट शुरू से ही सपा के हाथ में रही है। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव भी इस सीट से सांसद रह चुके हैं। ऐसे में यह सीट सपा के लिए खास है। सपा इस सीट को किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती है। जिसके चलते भी सपा इस सीट को लेकर मंथन में जुटी रही और दलित कार्ड में सुशील आनंद को न खेलकर यादव वर्ग पर ही भरोसा किया।क्योंकि ये सीट आज तक यादव परिवार पर ही केंद्रित रहीं हैं।इससे पहले रमाकांत यादव भी यहां से सांसद रह चुके हैं। यहां पर भाजपा अपना वजूद नहीं बना पाती। ये यादवों का गण है। यहां पर अगर सुशील आनंद चुनाव लड़ते तो भाजपा की सीट मजबूत होती।लेकिन अब सपा सुप्रीमो के भाई  चुनाव मैदान में हैं तो खेला रोमांचक हो गया। उधर बसपा के प्रत्याशी ने मुस्लिम समुदाय एवम दलित समाज पर पकड़ बनानी शुरू कर दी है।अब देखने वाली बात ये है कि सुपरस्टार निरूहा को लोग पसंदीदा चहरा बना पाएंगे जब सैफई परिवार का सदस्य मैदान में हो । देखना ये होगा कि अगर नेता जी की चुनावी सभा हुई तो पासा पलट सकता है। वैसे निरहुआ ने पूर्वांचल में अपनी एक खास पहचान बनाई हुई है। 

आजमगढ़ लोकसभा सीट पर मतदाताओं कुल संख्या करीब साढ़े 19 लाख बताई जा रही है। इसमें से सबसे बड़ी आबादी यादव मतदाताओं की है। आजमगढ़ सीट पर इनकी आबादी करीब 26 फीसदी है। वहीं, मुस्लिम मतदाता करीब 24 फीसदी हैं। इन दोनों को मिला दिया जाए तो 50 फीसदी मतदाता एक तरफ हो जाते हैं और समाजवादी पार्टी की जीत का आधार भी यही बनते रहे हैं। मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक की जीत यही समीकरण तय करता रहा है।वहीं, बसपा की जीत में दलितों के करीब 20 फीसदी और मुस्लिम वोट बैंक कारगर साबित हुआ है। भाजपा की जीत का समीकरण सवर्ण, पिछड़ा वर्ग और दलित वोट बैंक के साथ-साथ यादवों के एक वर्ग का समर्थन रहा है। दिनेश लाल यादव निरहुआ अगर इस बार इस समीकरण को एक बार फिर जमीन पर उतारने में कामयाब रहे तो फिर आजमगढ़ का रण उनके भी पक्ष में जा सकता है। अब देखना होगा कि इस बार बसपा के गुड्डू जमाली या निरहुआ या फिर सैफई परिवार कोन अपनी और आकर्षित कर पाता है।

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