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अल कौसर सोसायटी ने 3 साल 10 महीने से जेल में बंद किशोर को रिहा कराया




प्रयागराज, उत्तर प्रदेश अल कौसर सोसायटी ने 3 साल 10 महीने से जेल में बंद किशोर को रिहा कराया किशोर पर 5 साल की बच्ची का रेप करने का आरोप था। संस्था की अध्यक्ष अधिवक्ता नाजिया नफीस ने बताया कि झूठा मुक़दमा, बार बार बदलते बयान, गलत विवेचना, थाने पर बैठ कर मनगढंत FIR लिखने के कारण एक निर्दोष किशोर को कई वर्षों तक जेल की सलाखों के पीछे बिताने पड़े। इस मनगढंत कहानी की रूपरेखा तैयार करने में कई लोग शामिल रहे, जिसमें खुद पीडिता बच्ची, जिसकी झूठी बयानबाज़ी जो कई बार बदली गयी, उसके माता पिता, पुलिस वालों व  झूठे गवाहों का हाथ अदालत के सामने आया ।

इन सभी की मिली भगत के कारण एक निर्दोष किशोर राजा ( परिवर्तित) नाम, एक मानसिक रोगी बन कर रह गया है । खुद राजा जो अब निर्दोष साबित हो चुका है का कहना है कि व्यवस्था चलाने वालों द्वारा झूठी कहानी रचने के कारण उसे करीब चार वर्ष जेल में बिताने पड़े और वो भी बिना किसी जुर्म के।इस बीच सभी ने उसे अपराधी समझा क्योंकि उसकी ऊपर एक पांच वर्ष की बच्ची के साथ बलात्कार करने के प्रयास का आरोप लगा था।

नाजिया ने बताया कि राजा के पिता की मृत्यु हो चुकी थी और उसकी माता ने दूसरा विवाह कर लिया था,और उसने राजा कि कभी सुध न ली, राजा की पैरवी करने वाला कोई नहीं था कभी कभी उसकी बहन उससे मिलने आती थी पर गरीबी के कारण चाह कर भी अपने निर्दोष भाई की पैरवी नहीं कर सकी।नाजिया ने जब पता किया तो पता चला कि इस बच्चे के केस की सुनवाई हो गई है और फाइल जजमेंट में है फिर नाजिया ने पैरवी कर के फाइल को ट्रायल के ले खुलवाया,

पृष्ट भूमि में राजा ,जो पीड़िता के घर के पास रहता है, का झगड़ा पीड़िता के पिता से हो गया था। अब उस झगडे का बदला लेने के लिए उसने झूठी तहरीर  दे कर थाने वालों की सांठ गाँठ से राजा को सलाखों के पीछे भिजवा दिया । गवाह जो सामने लाये गए उनका झूठ भी अदालत के सामने आ गया । अल कौसर सोसाइटी की प्रेसिडेंट व अधिवक्ता नाज़िया नफीस जो शुरू से इस मुकदमे की लगातार पैरवी कर रही थी व अधिवक्ता सय्यद कमर अब्बास उर्फ नय्यर के प्रयत्न आखिर काम आये और अदालत ने राजा को निर्दोष साबित करते हुए बा इज़्ज़त बरी कर दिया।

राजा छूट भले गया है लेकिन उसकी मानसिक हालत ठीक नही है। उसका कहना है कि उसका बस चले तो वो उन सारे लोगों को जेल भिजवाये जिनके झूठ और फरेब के कारण उसे इतनी यातनाएं झेलनी पड़ीं ।

 राजा ( परिवर्तित नाम) के खिलाफ अपराध संख्या 481/ 18 के अंतर्गत धारा 354 ख 376 (2) भा. द. सं,  व 5/पाक्सो एक्ट, थाना करेली द्वारा आरोप पत्र दाखिल किया गया ।

कभी कहा गया कि अभियुक्त पांच साल की बच्ची जो घर से निकली थी को जंगल की तरफ ले गया और उसके कपड़े उतारे लेकिन शोर हुआ तो पीडिता का पिता वहां पहूंच गया व लड़की को ले आया।


कभी कहा गया कि अभियुक्त को दुष्कर्म का प्रयास करते एक महिला ने पकड़ा और वो महिला अभियुक्त और पीड़िता को अपने साथ ले आयी तथा पीड़ित को उसके पिता के हवाले कर दिया। इसके बाद किसी से तहरीर लिखवा कर थाने में दी गयी जिस पर मुकदमा कायम हुआ।

 फिर कहा गया कि अभियुक्त को एक बकरी चराने वाले /वाली ने पकड़ा और उसने उसे व पीड़िता को एक औरत के हवाले कर दिया ।


इधर अदालत ने यह देखा कि घटना स्थल पर कौन लोग उपस्थित थे तथा किन साक्षियों ने शोर मचाया इसका कोई उल्लेख प्राथमिकी में नही है। धारा 161 के बयान में भी वादी ने किन्ही गवाहों का नाम नही बताया। न्यायालय के समक्ष दिए गए बयान में यह कहा गया कि घटना स्थल पर एक महिला ने किशोर तथा पीड़िता को पकड़ लिया और वो औरत पीड़िता और किशोर को साथ लेकर वादी ( पिता) के पास ले आयी। 

कोर्ट ने कहा, वादी का यह बयान न केवल प्रथम सूचना रिपोर्ट बल्कि धारा 161 के बयान से भी पूरी तरह अलग है। वादी ने यह भी स्वीकार किया कि उसने बलात्कार का प्रयास करने वाली बात  तहरीर में नही लिखाई थी ।

वादी पिता का कथन है कि तहरीर उसे पढ़ कर नही सुनाई गई थी बल्कि उसे जहां अंगूठा निशान लगाने को कहा गया उसने लगा दिया। बलात्कार का प्रयास की बात न तो तहरीर में लिखाई गयी और न ही विवेचक को बताई गई थी। पहली बार इस न्यायालय यह बात बताई गयी है, जो औरत पीड़ित और किशोर को घर लायी थी उसका नाम वादी को नही मालूम। साक्षी ने न्यायालय को यह भी बताया कि डॉक्टरी मुआयना करने के लिए इस लिए मन कर दिया कि कोई बड़ा हादसा नही हुआ था ।

कभी कहा गया कि अभियुक्त व पीडिता को घटना स्थल से महिला लायी व कभी कहा गया पिता लाया। यह विरोधाभासी बयान है,उधर विवेचक ने लिखा है कि पीड़िता की माँ ने केवल छेड़खानी की बात उन्हें बताई थी। विवेचक ने किसी महिला द्वारा पीड़ित को लाने की बात दर्ज नही की है। उधर पीड़िता ने कोर्ट को यह बताया कि वह खुद घटना स्थल से भाग आयी थी। इस तरह धारा 161 व धारा 164 के बयानों में भी भिन्नता है।

कोर्ट ने कहा कि घटना स्थल की पहचान भी विवादित है।

अभियोजन की ओर से प्रस्तुत साक्ष्यों में एक मात्र महत्वपुर्ण साक्षी पीड़ित स्वयं है। जो घटना के समय मात्रा 5 वर्ष की थी । उसका 164 का बयान घटना से एक माह बीस दिन बाद करवाया गया, जिसका कोई स्पष्टीकरण नही है। ऐसे में उसे सिखाने पढ़ाने की संभावना से इनकार नही किया जा सकता। कोर्ट ने कहा,अभियोजन साक्षियों के बयान से प्रकट होता है कि प्रत्येक साक्षी ने अपनी कल्पना और सुविधा के अनुसार घटना के संबंध में बयान दिया है ।

कोर्ट ने कहा, एक मात्र पीड़िता के बयान के आधार पर जो कि कई विसंगतियों से युक्त है, अभियुक्त को दोषसिद्ध किया जाना अत्यंत जोखिम पूर्ण निर्णय होगा ।

 अतः यदि अभियुक्त किसी और अपराध में वांछित न हो तो उसे अविलंब रिहा किया जाए।नाजिया नफीस ने ये भी संकल्प दोहराया कि उनके द्वारा अपने विधिक संरक्षक अधिवक्ता राम अवतार वर्मा के मार्गदर्शन में ऐसे सैकड़ों अनाथ बेसहारा बच्चे जो जेल की सलाखों के पीछे सालों से बेवजह एवम् गैर कानूनी तरीके से बंद हैं उन्हें निशुल्क विधिक सहायता संस्था के ओर से उपलब्ध कराने के साथ ही उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा।

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