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राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने 24 दिसंबर को विधानसभा घेरने का किया ऐलान

लखनऊ। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने आज एक प्रेस विज्ञप्ति में अवगत कराया है कि सरकार कर्मचारी संगठनों को वार्ताओं में भटका कर समय पास कर रही है। कर्मचारियों की मुख्य समस्याओं पर निर्णय करने की बजाय  मुख्य सचिव  सरकार के उन फैसलों का गुणगान कर रहे हैं जिनसे  आमतौर पर कर्मचारियों का कोई लेना देना नहीं है । 2 नवंबर को मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के कई गुटों की एक बैठक थी। उस बैठक से संयुक्त परिषद के मुख्य 3 गुटों ने किनारा कर लिया। मुख्य सचिव ने बैठक के हवाले से पुरानी पेंशन बहाल करने पर तो कोई बात किया नहीं किया,  नई पेंशन की खूबियों  का ही बखान  करते रहे, जबकि नई पेंशन योजना में जो कुछ भी परिवर्तन हुआ है वह 2019 में हुआ है। उस समय प्रदेश के मुख्य सचिव अनूप चंद्र पांडे जी थे।कर्मचारियों की मुख्य मांगे, संविदा कर्मचारियों का नियमितीकरण, पुरानी पेंशन की बहाली, कैशलेस इलाज की सुविधा दिया जाना,आउटसोर्स कर्मचारियों की सेवा सुरक्षा, उनका मानदेय बढ़ाया जाना, प्रोत्साहन पर काम करने वाली आशाओं का नियत मानदेय न्यूनतम वेतन ₹15000 किया  जाना, रसोईया, चौकीदार, होमगार्ड, पीआरडी जवान को न्यूनतम नियत वेतन दिया जाना, कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों पर निर्णय किया जाना, नगर प्रतिकर भत्ता सहित काटे गए अन्य भत्तों का तत्काल भुगतान किया जाना, जुलाई 2021 से देय 3%  महंगाई भत्ता कर्मचारियों को दिया जाना ,विभिन्न विभागों में रिक्त पदों एवं पदोन्नति के पदों को भरा जाना, 2001 से पूर्व से कार्य कर रहे वन विभाग, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई विभाग, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा सहित अन्य विभागों के वर्क चार्ज, दैनिक वेतन एवं दैनिक श्रमिकों को नियमित किया जाना, 2001 तक नियमित कर्मचारियों को पेंशन का लाभ दिया जाना , आदि मांगों पर सरकार कोई निर्णय नहीं कर रही है। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने कर्मचारियों की मांगों के लिए 24 दिसंबर को विधानसभा घेराव का ऐलान किया है जिसमें 50,000 से ज्यादा कर्मचारी इकट्ठा होकर सरकार को अपनी ताकत का एहसास कराएंगे। संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने सभी कर्मचारी संगठनों से अपील किया है कि अधिकारियों की वार्ताओं के मकड़जाल से निकलकर सक्रिय आंदोलन में भागीदारी करें क्योंकि ब्यूरोक्रेसी के माध्यम से सरकार कर्मचारियों को आचार संगीता तक वार्ताओं में उलझा देना चाहती है ताकि प्रदेश में बड़ा आंदोलन ना हो सके ।सभी कर्मचारी संगठनों को एकजुट होकर चुनाव से पहले एक बड़ा आंदोलन खड़ा करना होगा तभी समस्याओं का निदान हो सकेगा।

मुख्यमंत्री जी ने विभागों को  कर्मचारी संगठनों के साथ वार्ता कर समस्याओं के निस्तारण के निर्देश दिए लेकिन विभागीय  अधिकारी केवल खानापूर्ति कर बैठकों की संख्या बढ़ा रहे हैं। मुख्यमंत्री जी को जो सूचना जा रही है वह केवल "ऑल इज वेल" के तहत  दी जा रही है जबकि जहां तक कर्मचारियों का प्रश्न है दूर-दूर तक कुछ भी  "वेल" नहीं है। सिर्फ इस सूचना देने से की सैकड़ों कर्मचारी संगठनों के साथ वार्ताएं हो गई हैं, सरकार के साथ कर्मचारी जुड़नेवाला वाला नहीं है। कर्मचारियों की मांगों पर निर्णय नहीं हुआ तो इस बार कर्मचारी  सरकार का साथ देने वाला नहीं है । पिछले  4.5 वर्षों में कर्मचारियों की एक भी बड़ी मांग पूरी नहीं हुई। हालांकि मुख्य सचिव स्तर पर वार्ताएं तो बहुत हुई है लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है।  कर्मचारी संगठनों को "वी फूल:" करने के बजाए यदि समस्याओं के निस्तारण पर ध्यान दिया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा।

 जे एन तिवारी ने मुख्यमंत्री जी को इस संबंध में एक विस्तृत पत्र लिखकर विभिन्न अधिकारियों के स्तर पर हो रही वार्तायो के सच का खुलासा किया है तथा सावधान भी किया है । उन्होन  कहा है  कि समय रहते रचनात्मक सोच के साथ कर्मचारियों की उचित समस्याओं का समाधान कराया जाए अन्यथा अधिकारियों की वार्ताओं के भरोसे कर्मचारियों का भरोसा जीता नहीं जा सकता है।जे एन तिवारी ने मुख्यमंत्री जी से अपील किया है कि यदि कुछ करना है तो मुख्यमंत्री जी कर्मचारी संगठन के साथ स्वयं रूबरू होकर जमीनी सच जानने का प्रयास करें अन्यथा अधिकारियों की वार्ताओं के भरोसे नैया पार लगने वाली नहीं है 


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