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अलग थलग हो रहे हैं पुराने भाजपाई

सत्ता से लेकर संगठन तक में नवागत भाजपाइयों का बढ़ा दबदबा

शिवपुरीभारतीय जनता पार्टी में इस समय असंतोष मिश्रित खामोशी है, सबको अब प्रतीक्षा है तो शेष बची जिला कार्यकारिणी के गठन की साथ ही शेष रह गए कुछ मण्डलों के गठन की जिन्हें लगातार असंतोष के चलते टाला जा रहा है। पार्टी सूत्रों की माने तो दीवाली बीत चुकी है और उप चुनाव भी हो चुके हैं ऐसे में अब इस असंतोष की विस्फोटक परिणिति कभी भी सामने आ सकती है। भविष्य में होने वाले निकाय चुनावों में इसका सीधा असर पार्टी की चुनावी परफ ारमेंस पर पडऩा तय है। भाजपा में इन दिनों असंतोष इस कदर है कि पार्टी का एक खेमा दूसरे खेमे को कतई बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है। पार्टी के कार्यकर्ता आधारित मूल सिद्धांत के विपरीत यहां संगठन में चल रही थोप नीति ने मूल भाजपाइयों को बेचैन कर दिया है। इनकी बेचैनी और कसमसाहट का आलम यह है कि यह अपनी पीड़ा पार्टी फोरम पर व्यक्त भी नहीं कर पा रहे और यह पीड़ा सही भी नहीं जा रही। नतीजतन इधर उधर चर्चाओं में इनका दर्द बयान हो रहा है। सोशल मीडिया पर भी कुछ भाजपा पदाधिकारियों ने पिछले दिनों मुखरता दिखाई थी मगर उनको जब कोई तबज्जोह नही मिली तो कसमसा कर वे चुप बैठ गए। यहां हो यह रहा है कि शनै शनै मूल भाजपाई घर बिठाए जा रहे हैं और मुख्यधारा से इन्हें किनारे किया जा रहा है, वहीं नवागत कांग्रेसी मूल के भाजपाई सभी मलाईदार पदों पर काबिज होते चले जा रहे हैं। भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति से लेकर अनुषांगिक संगठनों में शिवपुरी जिले के मूल भाजपा नेता साइड लाइन कर दिए गए हैं। जबकि इन पदों पर अब सीधे प्रदेश से सिंधिया समर्थकों का मनोनयन किया जा रहा है, जो यहां के खालिस भारतीय जनता पार्टी नेताओं को रास नहीं आ रहा। उनकी अनकही पीर यह है कि वह अपना दर्द आखिर बयां करें भी तो किसके सामने करें? नतीजतन संगठन में भीतर ही भीतर जबरदस्त घुटन देखी जा रही है। अभी जिला कार्यकारिणी की घोषणा नहीं हुई है लेकिन जिला कार्यकारिणी में भी मौजूदा हालातों को दृष्टिगत रखते हुए नवागत नेताओं को ही तबज्जो मिलना तय है। दरअसल मूल भाजपाई काग्रेसी कल्चर वाले नवागत नेताओं और उनकी कार्यशैली को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे, जबकि कांग्रेसी कल्चर में ढले नवागत भाजपाई भारतीय जनता पार्टी संगठन की कार्यप्रणाली से वाकिफ  नहीं है इसलिए वे अलग ढंग से काम कर रहे हैं, वैसे भी वे पार्टी की रीति नीति को अपनाने के इच्छुक नहीं उनकी प्रतिबद्घता पार्टी से कहीं ज्यादा सिंधिया के प्रति है और उन्हें भरपूर वजन भी मिल रहा है। इस द्वंद में असल भाजपा बिखरने के कगार पर नजर आ रही है। कई मायनों में यहां प्रदेश स्तर से हुई नियुक्तियों से सत्ता और संगठन दोनों में नवागत भाजपाइयों का दबदबा एकाएक बढ़ गया है। जबकि बरसों से पार्टी संगठन में पसीना बहा रहे कार्यकर्ता और तमाम नेता जहां के तहां खड़े रह गए हैं इनकी कोई सुनवाई कहीं नहीं हो रही। यहां प्रभारी मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया के साथ नवागत भाजपाइयों का एक अलग खेमा बन गया है वहीं कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए पोहरी विधायक एवं मंत्री सुरेश राठखेड़ा कांग्रेसी मूल के नवागत भाजपाइयों का अलग खेमा संचालित करते दिखाई दे रहे हैं जबकि सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों की एक अलग लॉबी यहां सक्रिय है। महाराज गुट उत्साहित है और तो और यशोधरा राजे सिंधिया खेमा भी खुद का अलग थलग महसूस करने लगा है। इसके विपरीत सिंधिया समर्थकों की बढ़ रही धमक को लेकर खुद उनके समर्थक यह कहने से नहीं चूकते कि महाराज ने सत्ता सौगात में दी है ऐसे में उनका हक यहां सत्ता और संगठन दोनों में पहले है। इन दावों को भाजपा के प्रदेश नेतृत्व द्वारा वजन भी प्रदान किया जा रहा है। तुलनात्मक देखें तो यहां यशोधरा राजे सिंधिया लॉबी भी कहीं ना कहीं सत्ता की नवीन पारी में कमजोर नजर आ रही है। कहने को यहां नरेंद्र सिंह तोमर गुट भी सक्रिय है लेकिन खुद नरेंद्र सिंह तोमर यहां की राजनीति में कोई दखल नहीं देने की मुद्रा में है, नतीजतन यह गुट साइलेंट मोड में है। सांसद के पी यादव के समर्थक भी यहां मौजूद हैं लेकिन उन्हें पूरी तरह से साइड लाइन कर दिया गया है। कुल मिलाकर नेता मंत्री और संगठन से जुड़े बड़े लोग कोई भी तर्क क्यों ना परोसें पर लेकिन हकीकत यह है कि उधार की सत्ता में सहभागिता के बाद से यहां मूल भाजपा बिखरती चली जा रही है।

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