मनरेगा से जोड़ पराली से गांव-गांव बनाए खाद, सृजित होगा रोजगार - नरेंद्र कुमार मिश्रा
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
वन एवं पर्यावरण के क्षेत्र में कार्यरत हेरिटेज फाउंडेशन के ट्रस्टी नरेंद्र कुमार मिश्रा का कहना है कि किसान भी समझते हैं कि पराली उनके खेत के लिए संजीवनी से कम नहीं। लेकिन गेहूं की बोआई के लिए जल्द खेत तैयार के लिए फसल अवशेष को खेत में जलाने का अपराध करते हैं। बदले में एफआईआर और जुर्माने की प्रक्रिया से उन्हें गुजरना पड़ता है। मिश्रा का सुझाव है कि मनरेगा से जोड़ कर ग्राम पंचायत स्तर पर काम किया जाए तो पराली से कम्पोस्ट खाद तैयार की जा सकती है, जिसकी बिक्री से ग्राम पंचायत को आमदनी भी होगी।
जारी विज्ञप्ति में मिश्रा का सुझाव है कि जिला प्रशासन उपनिदेशक कृषि, डीपीआरओ, उपायुक्त मनरेगा और सीवीओ की संयुक्त टीम बनाए। कृषि विभाग के तकनीकी अधिकारी, मनरेगा के तकनीकी सहायक, ग्राम प्रधान, सचिव, लेखपाल और रोजगार सेवक की मदद से कार्य योजना बना कर उसे धरातल पर उतारा जाए। ग्राम पंचायत स्तर पर खेतों में पराली मनरेगा के अंतगत एकत्र कराई जाए। उसे बड़े बड़े कच्चे कंपोस्ट पिट बनाए जाए। 10 से 15 क्विंटल पराली डाली जाएगी। उसके बाद वेस्ट डिकंपोजर की मदद से खाद बनाई जाएगी। 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ मिलाकर उसमें वेस्ट डिकंपोजर डाला जाए। 45 से 60 दिन में 07 से 08 क्विंटल खाद एक कंपोस्ट पिट में तैयार होगी। इसे किसान स्तर पर भी किया जा सकता है। ग्राम पंचायत इस खाद की बिक्री भी कर सकती हैं। मनरेगा से जोड़ने पर ग्राम स्तर पर लोगों को रोजगार भी मिलेगा। प्रबंधन के लिए मशीनों को इस्तेमाल करने
पराली से निजात पाने के लिए ये करें किसान भाई
मिश्रा कहते हैं कि किसान भाई व्यक्तिगत रूप से भी पराली से निजात पाने के डि कंपोजर का इस्तेमाल करें। यह बाजार में सिर्फ 20 रुपये एमआरपी पर सहज उपलब्ध है। 200 लीटर पानी में दो किलो गुड़ मिला कर उसमें वेस्ट डिकंपोजर डाल दे। किसी पेड़ के नीचे धूल उठा कर इस घोल में डाल कर तीन दिन रखे। उसे दिन में कई बार हिलाएं भी। धान की कटाई के बाद खेत को जुताई कर ले। पानी भर कर उसमें इस घोल का छिड़काव करें।
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