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गूंगे बहरों को इशारों की जुबान में दीनी तालीम दे रही दावते इस्लामी AK


गोरखपुर, उत्तर प्रदेश सुनने और बोलने में अक्षम लोगों की शारीरिक कमजोरी दीनी तालीम हासिल करने में अब रुकावट नहीं बनेगी। अब वह आम लोगों की तरह ही नमाज़, रोजा, हज, जकात, वुजू, गुस्ल सहित दीन के तमाम मसाइल सीख सकेंगे। वह भी मुफ़्त में। स्पेशल पर्सन नाम से यह नई पहल की है दावते इस्लामी हिन्द ने। गोरखपुर, महराजगंज, बस्ती व आज़मगढ़ में यह मुहीम चल रही है।दावते इस्लामी के विभाग 'स्पेशल पर्सन' के जिम्मेदार निसार अत्तारी की निगरानी में सुनने व बोलने में अक्षम लोगों को दीन-ए-इस्लाम की तालीम इशारों की जुबान में दी जा रही है। 

रसूलपुर निवासी 20 वर्षीय निसार ने करीब डेढ़ वर्ष पहले फतेहपुर से दावते इस्लामी द्वारा संचालित साइन लैंग्वेज कोर्स किया। दावते इस्लामी यह कोर्स ऑनलाइन व ऑफलाइन चलाती है। कोर्स की कोई फीस नहीं ली जाती है। निसार ने कोर्स करने के बाद रसूलपुर, जमुनहिया बाग, अहमदनगर चक्शा हुसैन की मस्जिदों में गूंगे बहरों को दीनी तालीम देनी शुरु की। जिससे काफी लोगों को फायदा हुआ। मस्जिद व घरों में जाकर अक्षम लोगों को दीन के मसाइल के प्रति दिलचस्पी पैदा की जाती है।

निसार अत्तारी ने बताया कि दीन का जरूरी इल्म हासिल करना हर मुसलमान मर्द और औरत पर फर्ज है। सभी को दीन का इल्म हासिल करना चाहिए। दीन का इल्म हासिल करने में दिक्कत उन लोगों को ज्यादा आती है जो सुन व बोल नहीं सकते या फिर देख नहीं सकते या फिर अपाहिज हैं। दावते इस्लामी ने इन्हीं सब बातों के मद्देनज़र स्पेशल पर्सन विभाग खोला, ताकि दीन का इल्म हासिल करने में ऐसे लोगों की मदद का जाए जो शारीरिक रूप से कमजोर हैं। इसके बहुत अच्छे नतीजे आए हैं। शहर के कई मोहल्लों व जिलों में अक्षम लोगों को दीन की तालीम दी जा रही है। जिसमें हाथ के इशारे, बॉडी लैंग्वेज व चेहरे के एक्सप्रेशन से दीनी तालीम दी जाती है। वुजू, गुस्ल, नमाज़ सहित दीन की तमाम जरुरी बातें सिखाई व बताईं जाती हैं। इस्माईलपुर में हर जुमेरात बाद नमाज़ एशा इज्तिमा में शामिल होने वाले शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को तकरीर वगैरा इशारों की जुबान में अलग से समझाया जाता है। 

उन्होंने बताया कि शारीरिक रूप से अक्षम लोगों को खास तवज्जो की जरूरत है। अक्षम लोग दावते इस्लामी से जुड़कर फायदा हासिल कर सकते हैं। इस नम्बर 6394 812 836 पर भी संपर्क किया जा सकता है। दावते इस्लामी अक्षम लोगों को समय-समय पर किताबें, फल फ्रूट वगैरा दे कर भी प्रोत्साहित करती है। बीमार पड़ने पर अक्षम लोगों का हालचाल भी लिया जाता है। अक्षम लोग जब दीन की तालीम हासिल कर लेते हैं तो वह दूसरे अक्षम लोगों को भी दीन का इल्म हासिल करने की दावत देते हैं।अहमदनगर चक्शा हुसैन के रहने वाले 17 वर्षीय मोहम्मद मोहसिन रज़ा अत्तारी ने साइन लैंग्वेज कोर्स किया और अब गूंगों बहरों को तालीम दे रहे हैं। खुद भी इंटर की तालीम हासिल कर दूसरों को सहारा बन रहे हैं। इसी तरह रसूलपुर के आमिर अत्तारी भी अक्षम लोगों को दीनी तालीम दे रहे हैं। सीखने सिखाने का यह कारवां धीरे-धीरे बढ़ता ही जा रहा है और मुस्लिम समाज को अच्छा संदेश भी दे रहा है।


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