अपनों के अस्पताल के बाद अब अपनी कुर्सी की आई बारी, तो जनता को उलझा दो गोबर में और कमल के मोजर बियर को 12 सौ करोड़ mo - ADAP News - अपना देश, अपना प्रदेश!

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अपनों के अस्पताल के बाद अब अपनी कुर्सी की आई बारी, तो जनता को उलझा दो गोबर में और कमल के मोजर बियर को 12 सौ करोड़ mo

डॉक्टर के राज में पावर इंडस्ट्री के क्षेत्र में बड़े बड़े एमओयू हुए। अनेक ने उत्पादन शुरू किए। कुछ वापस लौट गए और कुछ जमीन लेकर आज भी रास्ता दे कह रहे हैं।इन ढाई-तीन सालों में तो कोई ऐसे उद्योग धंधे प्रदेश में नहीं आए। आया तो सिर्फ गरवा गोबर गोठान! बाकी इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में प्रदेश की जो दुर्गति होते दिख रही है वह जनता देख ही रही है। सिचाई विभाग का प्रमुख रायगढ़ वाला ठेकेदार अग्रवाल है और पीडब्लूडी का मुखिया भी ठेकेदार ही है। यहां कोई ईएनसी नहीं है न ही सचिव!अ


ब प्रदेश में पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर जो अटक गये, या जिनके भुगतान रुके थे, उन्हें खोजने का काम शुरू हो गया। इनमें से ही सबसे महत्वपूर्ण है मोजर बियर कंपनी का पावर प्रोजेक्ट, जो माइनिंग मिनिरल में भी काम करता है। सूत्र बताते हैं कि ये कंपनी मध्यप्रदेश के कमल के नाथ का है, जिनका फायदा लेने के लिए एक चाल चली जा रही है कि किसी तरह इस कंपनी को उपकृत किया जाय, जैसा कि अपने रिश्तेदार के अस्पताल को किया गया। मंत्रालय और सीएसआईडीसी के अधिकारी बताते हैं कि नान के पुराने साहब जो इंडस्ट्री ही नही वरन प्रदेश को चलाने वाले हैं, कि भूमिका इसमे बेहद खास है। कहा जा रहा है कि मोजर बियर कंपनी को लगभग 1200 करोड़ मतलब शब्दों में एक हजार दो सौ करोड़ की इंडस्ट्रियल सब्सिडी दी जानी थी, परंतु पिछली सरकार द्वारा इसे नहीं दिया गया। क्योंकि इसके कार्य अनुबंध के अनुरूप नहों थे।


तत्कालीन अमन के समय मे भी इसे रिजेक्ट किया गया। 2008 से 2020 निकल गया पर परीक्षण के बाद इसे सब्सिडी देने से इनकार कर दिया गया। इस सब्सिडी हेतु बजट में प्रावधान करना भी जरूरी है। पर सीएसआईडीसी के नाराज कर्मकारी बता रहे हैं कि बजट में विवाद न होने पाए इसलिए सी एस आई डी सी के खुद के पैसों से ही सब्सिडी देने का अनुमोदन कर दिया गया और सुनते हैं कि प्रथम किश्त के रूप में लगभग 80 करोड़ रुपये जारी भी कर दिए गए हैं! इसके पीछे का राज यही है की ढाई-ढाई साल के मामले में कमलनाथ की अक्ल का इस्तेमाल उन्हें उपकृत करके कर लिया जाए! अब देखने वाली बात ये है कि दाऊ और कमल के बीच की ये खिचड़ी है या कि कमल के किसी बिचौलिए और दाऊ के बीच की वार्ता का परिणाम! पर दोनो परिस्थिति में कमल को कीचड़ ही मिलता दिख रहा है। दाऊ यहां भी गच्चा न खा जाएं। एक ओर जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ो रूपये जो लुटाने का फैसला कर लिए, वहीं दूसरी ओर अपनी इज्जत बचाने कमल का वार उल्टा न पड़ जाए। इस समझौते को गांधी परिवार या की वेणु के गोपाल किस रूप में लेंगे,नही पता। पर पुनिया को विश्वास में लेकर यह किया जा रहा है, ऐसा कहा जा रहा है। इस प्रकार हजार करोड़ का व्यारा न्यारा करके अपनी कुर्सी बचाने के लिए एक चाल दाऊ ने फिर चल दी है। इस मामले को दिग्विजय जी कैसे लेते हों ये भी देखने वाली बात होगी। पर इतनी घबराहट क्यों? इतनी बेचैनी क्यों?बता दें अगली कड़ी में मुसाफिर एक और खुलासा करने वाला है।

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