जन सहभागिता से राजरोग अब खात्मे की ओर, 2025 में होगा टी.बी.-मुक्त भारत
डा सुनील कुमार यादव चेयरमैन स्टेट फार्मेसी काउंसिल उत्तर प्रदेश प्रांतीय अध्यक्ष फार्मेसिस्ट फेडरेशन चीफ फार्मेसिस्ट डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिविल चिकित्सालय, लखनऊ । |
लखनऊ राजरोग,यक्ष्मा, क्षय रोग, टी.बी., तपेदिक ट्यूबरकुलोसिस सब एक दूसरे के पर्यायवाची हैं, कई नामों वाले इस रोग के प्रति पूर्व में यह धारणा थी कि यह ठीक ना होने वाला रोग है संभवतः इसीलिए इसे राजरोग कहा जाने लगा था और होता भी कुछ ऐसा ही था, 1990 में फार्मेसी की शिक्षा ग्रहण कर घर लौटने के बाद टी.बी. से कई मौतों का गवाह मैं स्वयं हूं । टी.बी. एक ऐसा रोग है जो कभी बड़ा छोटा नहीं देखी विश्व के अनेक महान और महत्वपूर्ण लोगों को यह रोग हो चुका है इसमें से कुछ उपचारित हो चुके हैं और कुछ कि इससे मृत्यु भी हो गई है ।
टी.बी., माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से उत्पन्न होने वाली एक संक्रामक बीमारी है, जो अपने गंभीर सामाजिक प्रभावों के कारण मानव इतिहास में हमेशा एक स्थायी चुनौती रही है। यह अनुमान लगाया गया है कि जीनस माइकोबैक्टीरियम की उत्पत्ति 150 मिलियन वर्ष से भी पूर्व हो चुकी थी। मध्य युग में, ग्रीवा लिम्फ नोड्स को प्रभावित करने वाली बीमारी स्क्रोफुला को टीबी के एक नए नैदानिक रूप के रूप में वर्णित किया गया था । इस बीमारी को इंग्लैंड और फ्रांस में “राजा की बुराई” के रूप में जाना जाता था । 1720 में पहली बार टी.बी. की संक्रामक उत्पत्ति का अनुमान ब्रिटिश चिकित्सक बेंजामिन मार्टन द्वारा लगाया गया था, टी.बी. के खिलाफ पहला सफल उपाय सेनेटोरियम इलाज की शुरूआत थी जिसे अक्सर पुराने चलचित्रों में भी देखा जा सकता है ।इसे ‘व्हाइट प्लेग’ के नाम से भी जाना जाता है। कारक जीव की पहचान सबसे पहले रॉबर्ट कॉक्स ने की थी और इसलिए इसे कॉक्स रोग के रूप में जाना जाता है। टीबी रोधी दवाओं की खोज से पहले, इसका उपचार आम तौर पर रूढ़िवादी तरीके से किया जाता था । 1952 में खोजी गई पहली टीबी विरोधी दवा स्ट्रेप्टोमाइसिन थी ।
लक्ष्य –
भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी ने देश को 2025 तक टी.बी. मुक्त देश बनाने का लक्ष्य रखा है, यह लक्ष्य विश्व के टी.बी. फ्री होने के लक्ष्य 2030 से 5 वर्ष पहले का प्रस्तावित किया गया है । माननीय प्रधानमंत्री जी ने दिनांक 13 मार्च 2018 को टीवी फ्री भारत योजना को शुरू किया । भारत में जन सहभागिता बढ़ाते हुए देश में निशुल्क उपचार और टी.बी. के रोगियों के लिए पौष्टिक भोजन हेतु धनराशि दिए जाने की भी व्यवस्था की गई है । हमारे देश के फार्मा वैज्ञानिकों और उद्योगों ने टी.बी. के खात्मे के लिए कमर कस ली है देश की फार्मेसी लगातार इस क्षेत्र में कार्य कर रही है । चिकित्सकों के साथ मिलकर फार्मासिस्ट जन जागरूकता को बढ़ाने, मरीजो तक औषधियों की उपलब्धता कराने, रोग और दवाओं के प्रति मरीज को जागरूक कर इस रोग के खात्मे के लक्ष्य की तरफ अग्रसर है । देश में आशा, आंगनवाड़ी आदि का भी सहयोग लिया जा रहा है ।
विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से रोग के प्रसार को रोकने हेतु सावधानियां बरते जाने की जानकारियां भी दी जा रही है ।
कॉविड के समय लोगों को व्यवहार परिवर्तन, सफाई, मास्क के प्रयोग आदि की जो समझ उत्पन्न हुई है वह भी इस रोग के खात्मे का कारक बनेगी ।
इतिहास –
24, मार्च 1882 को जर्मन वैज्ञानिक रॉबर्ट कोच ने ट्यूबरक्लोसिस यानी टी.बी. के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज की जो टी.बी. के इलाज में बहुत सहायक हुई। उन्हें अपनी इस खोज के लिए वर्ष 1905 में नोबेल पुरस्कार भी मिला।
कैसे होता है संक्रमण-
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार जब फेफड़ों की टी.बी. से पीड़ित लोग खांसते, छींकते या थूकते हैं तो टीबी हवा के माध्यम से फैल सकती है। किसी व्यक्ति को टी.बी. संक्रमित होने के लिए केवल मात्र कुछ ही कीटाणुओं को सांस के माध्यम से अंदर लेने की जरूरत होती है।
संक्रामकता –
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल लगभग 10 मिलियन लोग टी.बी. से बीमार पड़ते हैं। यह बीमारी अब रोकथाम के योग्य है और इसका उपलब्ध है, फिर भी बीमारी होने के बाद हर साल 1.5 मिलियन लोग टीबी से मरते हैं, जिससे यह दुनिया का शीर्ष संक्रामक मृत्युदायी रोग बन जाता है।
यह भी प्रकाश में आया है कि एचआईवी से पीड़ित लोगों की मृत्यु का प्रमुख कारण टी.बी. है ।
टीबी से बीमार पड़ने वाले अधिकांश लोग निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, लेकिन टी.बी. पूरी दुनिया में मौजूद है। टी.बी. से पीड़ित सभी लोगों में से लगभग आधे से अधिक 8 देशों में पाए जाते हैं: बांग्लादेश, चीन, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका।
अनुमान है कि वैश्विक आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा टी.बी. बैक्टीरिया से संक्रमित हो गया है, लेकिन अधिकांश लोगों में टी.बी. रोग विकसित नहीं होगा और कुछ लोग संक्रमण से मुक्त हो जाएंगे। जो लोग संक्रमित हैं लेकिन अभी तक इस रोग से बीमार नहीं पड़े हैं, वे इसे प्रसारित नहीं कर सकते।
एक रिपोर्ट के अनुसार अगर कोई मरीज जिसका बलगम टी.बी. के बैक्टीरिया के लिए धनात्मक है,यदि वह इलाज नहीं लेता है तो एक वर्ष में 10 से 15 नए मरीज को संक्रमित कर सकता है और उसके परिवार में ज्यादा संक्रमण फैलने की संभावना होती है ।
टी.बी. बैक्टीरिया से संक्रमित लोगों में जीवनकाल में टीबी से बीमार पड़ने का जोखिम 5-10% होता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों, जैसे एचआईवी, कुपोषण या मधुमेह से पीड़ित लोग, या जो लोग तंबाकू का उपयोग करते हैं, उनके बीमार पड़ने का खतरा अधिक होता है।
विश्व टीबी दिवस
राबर्ट कॉक्स के रिसर्च को सम्मान देने के लिए 24 मार्च को विश्व क्षय दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन टीबी के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता है ।
कहां होती है टीबी –
वैसे टी.बी. का नाम सुनते ही केवल फेफड़ों की टीबी दिमाग में आती है लेकिन ‘बाल और नाखून’ शरीर के इन दो हिस्सों को छोड़कर पूरे शरीर के किसी भी अंग में टी.बी. हो सकती है । जहां फेफड़ों की टी.बी. को पलमोनरी टी.बी. कहा जाता है, वहीं शरीर के अन्य हिस्से में होने वाले टी.बी. को एक्स्ट्रा पलमोनरी टी.बी. कहा जाता है ।
एक नजर – अवलोकन
अनुमान है कि वैश्विक आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा टी.बी. बैक्टीरिया से संक्रमित है। टी.बी. से संक्रमित लगभग 5-10% लोगों में अंततः लक्षण दिखाई देंगे और उनमें टी.बी. रोग विकसित हो जाएगा।
जो लोग संक्रमित हैं लेकिन (अभी तक) बीमार नहीं हैं, वे इसे प्रसारित नहीं कर सकते। टी.बी. रोग का इलाज आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है और इलाज के बिना यह घातक हो सकता है।
वैक्सीन –
भारत में टी.बी. से बचाव के लिए शिशुओं या छोटे बच्चों को जन्म के तुरंत बाद बैसिल कैलमेट-गुएरिन (बीसीजी) टीका दिया जाता है। टीका फेफड़ों के बाहर टी.बी. को रोकता है लेकिन फेफड़ों में नहीं । यदि जन्म के समय या टीका नहीं लग पाता तो इसे एक वर्ष के भीतर कभी भी लगाया जा सकता है ।
रिस्क फैक्टर –
कुछ स्थितियां ऐसी होती है जिसमें टी.बी. होने की संभावना और उसके खतरे बढ़ सकते हैं जैसे
*धूम्रपान
*ऑटोइम्यून रोग
*मधुमेह (उच्च रक्त शर्करा),
*कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (जैसे एचआईवी या एड्स संक्रमित ),
*कुपोषण
*तंबाकू इस्तेमाल
*ऐसे पर्यावरण में कार्य स्थल जहां भीड़ भाड़ और प्रदूषण ज्यादा हो ।
क्या हो सकते हैं लक्षण ?
अक्सर ऐसा देखा गया है कि गुप्त टी.बी. संक्रमण वाले लोग स्वयं को बीमार महसूस नहीं करते हैं और ऐसे लोग संक्रामक भी नहीं होते हैं। टी.बी. से संक्रमित होने वाले लोगों का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही टीबी रोग और लक्षण उत्पन्न करता है । शिशुओं और बच्चों में टीबी की बीमारी का अधिक खतरा होता है।
कुछ लक्षण निम्न हैं –
*लगातार बुखार बने रहना या शाम को बढ़ने वाला बुखार
*वजन घटना
* तीन सप्ताह से अधिक समय तक खांसी आना
*कभी-कभी खांसी में खून आना
*छाती में दर्द होना
*थकान या कमजोरी लगना
*रात को पसीना आना ।
एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी होने पर अलग-अलग लक्षण भी उत्पन्न होते हैं
लोगों में लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि टी.बी. शरीर में कहां सक्रिय होती है। जबकि टी.बी. आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है, यह गुर्दे, मस्तिष्क, रीढ़ और त्वचा को भी प्रभावित करती है।
कैसे करें रोकथाम –
यदि ऊपर दिए गए लक्षण उत्पन्न होते हैं तो सचेत हो जाना आवश्यक है क्योंकि टी.बी. का शीघ्र निदान और उपचार बीमारी के प्रसार को रोकने के साथ ही मरीज को ठीक करने में बहुत मदद कर सकता है
यदि कोई अधिक रिस्क फैक्टर या अधिक जोखिम में हैं, जैसे कि यदि उसे एचआईवी है या ऐसे लोगों के संपर्क में हैं जिन्हें आपके घर या आपके कार्यस्थल में टी.बी. है, तो टी.बी. संक्रमण के लिए परीक्षण अत्यंत आवश्यक है । चिकित्सक द्वारा टी.बी. की पहचान किए जाने के बाद दवा और उसकी मात्रा निर्धारित कर दी जाती है । भारत सरकार द्वारा सभी दवाएं निशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है, आवश्यकता यह है कि मरीज अनिवार्य रूप से निर्धारित कोर्स को जरूर पूरा करे ।
टी.बी. के मरीज खांसते समय अच्छी स्वच्छता अपनाएं, जिसमें अन्य लोगों के संपर्क से बचना और मास्क पहनना, खांसते या छींकते समय अपना मुंह और नाक ढंकना और बलगम और इस्तेमाल किए गए ऊतकों का उचित तरीके से नष्ट करना शामिल है।
भारत सरकार द्वारा यह लक्ष्य तय किया गया है कि टी.बी. के मरीजों के संपर्क को खोजते हुए उन परिवारों को खोजना है जिनके परिवार में टी.बी. धनात्मक मरीज है, उनके सभी संपर्क जनों की जांच की जानी है, यदि कोई व्यक्ति संक्रमित पाया जाता है तो उसका इलाज प्रारंभ कर दिया जाता है और यदि संक्रमित नहीं है तो बचाव के रूप में प्रीवेंटिव थेरेपी दिया जाता है ।
निदान –
टी.बी. के निदान (पहचान) का सबसे कारगर एवं विश्वसनीय तरीका सुक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) के द्वारा बलगम की जांच करना है क्योंकि इस रोग के जीवाणु (बेक्ट्रेरिया) सुक्ष्मदर्शी द्वारा आसानी से देखे जा सकते हैं।
टी.बी. रोग के निदान के लिये एक्स-रे करवाना, बलगम की जॉंच की अपेक्षा मंहगा तथा कम भरोसेमन्द है, फिर भी कुछ रोगियों के लिये एक्स-रे व अन्य जॉंच जैसे FNAC, Biopsy, CT Scan की आवश्यकता हो सकती है।
डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित रैपिड डायग्नोस्टिक परीक्षणों में एक्सपर्ट एमटीबी/आरआईएफ अल्ट्रा और ट्रूनेट परीक्षण शामिल हैं। इन परीक्षणों में उच्च नैदानिक सटीकता है और इससे टी.बी. और दवा प्रतिरोधी टी.बी. का शीघ्र पता लगाने में बड़े सुधार होंगे। भारत में सभी जांचे निःशुल्क उपलब्ध हैं ।
संक्रमण वाले लोगों की पहचान के लिए ट्यूबरकुलिन त्वचा परीक्षण (टीएसटी) या इंटरफेरोंगामा रिलीज परख (आईजीआरए) का उपयोग किया जा सकता है।
मल्टीड्रग-प्रतिरोधी और टी.बी. के अन्य प्रतिरोधी रूपों के साथ-साथ एचआईवी से संबंधित टीबी का निदान करना जटिल है, लेकिन यह भी भारत सरकार निःशुल्क उपलब्ध करा रही है ।
टी.बी. की जॉंच कहॉं।
अगर तीन सप्ताह से ज्यादा खांसी हो तो नजदीक के सरकारी अस्पताल/ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र , जहॉं बलगम की जॉंच होती है, वहॉं बलगम के तीन नमूनों की निःशुल्क जॉंच करायें।
टी.बी. की जॉंच और इलाज सभी सरकारी अस्पतालों में बिल्कुल मुफ्त किय जाता है।
टी.बी. का उपचार कहॉं मिलेगा ?
रोगी को घर के नजदीक के स्वास्थ्य केन्द्र (उपस्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र एवं चिकित्सालयों) में डॉट्स पद्वति के अन्तर्गत किया जाता है। उपचार अवधि 6 से 8 माह।
क्षय रोग का इलाज भारत सरकार द्वारा संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत विभिन्न दवाओं से निःशुल्क किया जाता है। टी.बी. संक्रमण और बीमारी दोनों के लिए उपचार की सिफारिश की जाती है।
उपयोग की जाने वाली सबसे आम एंटीबायोटिक्स हैं:
आइसोनियाज़िड
रिफाम्पिन
पायराज़ीनामाईड
एथेमब्युटोल
स्ट्रेप्टोमाइसिन
प्रभावी होने के लिए, इन दवाओं को 4-6 महीने तक रोजाना लेना होगा। विभिन्न परिस्थितियों में इन दवाओं की खुराक और समय चिकित्सक द्वारा पुनर्निर्धारित किया जाता है, एक्स्ट्रा पलमोनरी टी.बी. में उपचार की सीमा 1 वर्ष या अधिक भी हो सकती है ।
विशेष सावधानी
समय से पहले या चिकित्सीय सलाह के बिना दवाएँ बंद करना खतरनाक है।
यदि दवाई समय से पूर्व बंद कर दी जाती है तो दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है जो अत्यंत घातक हो सकता है ।
मल्टीड्रग-प्रतिरोधी टीबी –
जिस टी.बी. पर मानक दवाओं का असर नहीं होता, उसे दवा-प्रतिरोधी टी.बी. (एमडीआर) कहा जाता है और इसके लिए विभिन्न दवाओं के साथ अधिक विषाक्त उपचार की आवश्यकता होती है।
एमडीआर- टी.बी. बैक्टीरिया के कारण होने वाली टी.बी. का एक रूप है जब आइसोनियाज़िड और रिफैम्पिसिन प्रथम-पंक्ति टी.बी. दवाएं प्रभावहीन हो जाती हैं । एमडीआर-टीबी का इलाज दूसरी पंक्ति की दवाओं के उपयोग से संभव है। दूसरी पंक्ति के उपचार विकल्पों के लिए व्यापक दवाएं भी सरकार द्वारा निःशुल्क उपलब्ध कराई जा रही हैं ।
कुछ मामलों में, अधिक व्यापक दवा का प्रतिरोध विकसित हो सकता है।
एमडीआर- टी.बी. एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और स्वास्थ्य सुरक्षा खतरा बना हुआ है।
डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों के अनुसार, एमडीआर/आरआर- टी.बी. का पता लगाने के लिए टी.बी. की बैक्टीरियोलॉजिकल पुष्टि और तेजी से आणविक परीक्षणों या संस्कृति विधियों का उपयोग करके दवा प्रतिरोध के परीक्षण की आवश्यकता होती है।
टी.बी. और एचआईवी –
एचआईवी से पीड़ित लोगों में एचआईवी रहित लोगों की तुलना में टीबी रोग से बीमार पड़ने की संभावना 16 (अनिश्चितता अंतराल 14-18) गुना अधिक होती है। एचआईवी से पीड़ित लोगों में मृत्यु का प्रमुख कारण टीबी है।
एचआईवी और टी.बी. एक घातक संयोजन बनाते हैं, प्रत्येक दूसरे की प्रगति को गति देते हैं। 2022 में एचआईवी से जुड़ी टी.बी. से लगभग 167,000 लोगों की मौत हो गई। 2022 में दस्तावेजी एचआईवी परीक्षण परिणाम वाले अधिसूचित टीबी रोगियों का प्रतिशत 80% था, जो 2021 में 76% से अधिक है। डब्ल्यूएचओ अफ्रीकी क्षेत्र में एचआईवी से संबंधित टी.बी. का बोझ सबसे अधिक है। कुल मिलाकर 2022 में, एचआईवी के साथ जी रहे टीबी रोगियों में से केवल 54% एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी (एआरटी) पर थे।
प्रभाव
टीबी दुनिया के हर हिस्से में होती है। 2022 में, WHO के दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र (46%) में सबसे अधिक नए टी.बी. के मामले सामने आए, इसके बाद अफ्रीकी क्षेत्र (23%) और पश्चिमी प्रशांत (18%) का स्थान रहा। लगभग 87% नए टीबी के मामले 30 उच्च टी.बी. बोझ वाले देशों में हुए, जिनमें से वैश्विक कुल के दो-तिहाई से अधिक मामले बांग्लादेश, चीन, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान और फिलीपींस में हुए।
वैश्विक स्तर पर 2022 में, 2.2 मिलियन नए टी.बी. के मामले सामने आए, जो अल्पपोषण के कारण थे, 0.89 मिलियन एचआईवी संक्रमण के कारण, 0.73 मिलियन शराब के सेवन संबंधी विकारों के कारण, 0.70 मिलियन धूम्रपान के कारण और 0.37 मिलियन मधुमेह के कारण थे।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
2022 में टी.बी. से कुल 1.3 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई (एचआईवी से पीड़ित 167,000 लोगों सहित)। दुनिया भर में, कोविड-19 (एचआईवी और एड्स से ऊपर) के बाद टी.बी. दूसरा प्रमुख संक्रामक हत्यारा है।
2022 में, दुनिया भर में अनुमानित 10.6 मिलियन लोग तपेदिक (टीबी) से बीमार पड़ गए, जिनमें 5.8 मिलियन पुरुष, 3.5 मिलियन महिलाएं और 1.3 मिलियन बच्चे शामिल थे। टीबी सभी देशों और आयु समूहों में मौजूद है। टी.बी. इलाज योग्य और रोकथाम योग्य है।
मल्टीड्रग-प्रतिरोधी टी.बी. (एमडीआर-टीबी) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और स्वास्थ्य सुरक्षा खतरा बना हुआ है। 2022 में दवा प्रतिरोधी टी.बी. से पीड़ित केवल 5 में से 2 लोगों को ही इलाज मिल सका।
टी.बी. से निपटने के वैश्विक प्रयासों ने वर्ष 2000 से अनुमानित 75 मिलियन लोगों की जान बचाई है।
टी.बी. पर 2018 संयुक्त राष्ट्र उच्च स्तरीय बैठक में सहमत वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए टीबी की रोकथाम, निदान, उपचार और देखभाल के लिए सालाना 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है। 2030 तक टी.बी. महामारी को समाप्त करना संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के स्वास्थ्य लक्ष्यों में से एक है। भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी ने 5 वर्ष पूर्व ही वर्ष 2025 तक भारत को क्षय-मुक्त करने का लक्ष्य रखा है, आइए हम सभी मिलकर इस लक्ष्य को पूरा करने में अपना शत प्रतिशत योगदान देने का संकल्प लेते हैं, देश के सभी फार्मा वैज्ञानिकों, औद्योगिक फार्मेसिस्टों, शिक्षको, सामुदायिक, क्लिनिकल और हॉस्पिटल फार्मेसिस्टों से अपील करता हूं कि भारत सरकार के संकल्प को पूरा करने के लिए अपना सम्पूर्ण योगदान दें ।
क्षयमुक्त भारत – स्वस्थ भारत
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