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कर्मचारियों को उनके हाल पर ही छोड़ा गया इस बजट में


 डा सुनील यादव अध्यक्ष फार्मेसिस्ट फेडरेशन प्रमुख उपाध्यक्ष राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद 


"लखनऊ तुम्हारी शख्सियत से ये सबक लेगी नई नस्लें,

वही मंजिल पर पहुंचा है, जो अपने पांव चलता है ।।"

आज वित्त मंत्री जी ने बजट भाषण में माननीय मुख्यमंत्री जी के परिपेक्ष्य में ये लाइनें पढ़ीं , निश्चित ही प्रदेश में जनहित की अनेक योजनाएं वित्तसंत्रिप्त की गई हैं, परंतु कर्मचारियों को अकेला ही छोड़ दिया गया है । 36 पेज के बजट भाषण में अनेक योजनाओं, समूहों को लाभ दिया गया लेकिन प्रदेश के कर्मचारी जो शासकीय नीतियों का परिपालन सुनिश्चित करते हैं उनके लिए कोई योजना नहीं आई । 

आज प्रदेश में स्थाई कर्मचारियों से अधिक संख्या ठेकेदारी और संविदा कर्मियों की होती जा रही है इसलिए सरकार को इनके कल्याण के लिए योजना लानी चाहिए । समयबद्ध स्थाई करण, स्थाई नौकरियों में वरीयता इसमें प्रमुख हो सकती है । 

इस बजट में फार्मा सेक्टर को अतिरिक्त तरजीह नहीं दी गई जो चिंतनीय है । वास्तव में प्रदेश में अपार संभावनाएं हैं जहां स्थाई रोजगार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । 

 कैशलेश चिकित्सा के लिए सरकार ने धन आवंटित किया जो स्वागत योग्य है ।

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद ने प्रदेश सरकार के बजट में पुरानी पेंशन बहाली की घोषणा न किए जाने सहित कर्मचारी हितों को नजरंदाज किए जाने का आरोप लगाते हुए बजट को कर्मचारी हितों के प्रतिकूल बताया है ।  

परिषद के  महामंत्री अतुल मिश्रा और प्रमुख उपाध्यक्ष और फार्मेसिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष  सुनील यादव, फेडरेशन के महामंत्री अशोक कुमार  ने कहा कि कर्मचारियों की मांग थी कि पुरानी पेंशन बहाल की जाए लेकिन बजट में कोई घोषणा नहीं की गई, इसलिए कर्मचारियों के लिए यह बजट आशा के विपरीत रहा है ।

परिषद ने स्थाई रोजगार सृजन की दिशा में कोई योजना ना होने पर भी चिंता व्यक्त की है । परिषद के अनुसार निजीकरण की योजनाएं कभी भी जनहित में नहीं हो सकती इसलिए सरकार को  स्थाई रोजगार की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए ।

संविदा प्रथा और ठेकेदारी प्रथा को समाप्त करने के स्थान पर बढ़ावा दिया जा रहा है, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में सभी पदों पर संविदा पर भर्ती की जाती है, स्थाई रोजगार सृजन ना होने से तकनीकी योग्यता धारक लोगों को या तो बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है या अल्प वेतन और भविष्य की असुरक्षा के बीच कार्य करना पड़ रहा है । संविदा कर्मचारियों को अपने मानदेय बढ़ाने का भी इंतजार था जो पूरा नहीं हुआ ।

 पीपीपी मॉडल पर जो मेडिकल कॉलेज बनाए जा रहे हैं उनमें भी स्थाई रोजगार की घोषणा नहीं है अतः यह बजट कर्मचारी हितों के प्रतिकूल है 

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