हज़रत अमीर-ए-मुआविया को शिद्दत से किया याद - ADAP News - अपना देश, अपना प्रदेश!

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हज़रत अमीर-ए-मुआविया को शिद्दत से किया याद

 


गोरखपुर, उत्तर प्रदेश मुहिब्बाने असहाबे रसूल कमेटी की ओर से घासीकटरा कर्बला के पास 'तहफ़्फ़ुज़-ए-सहाबा किराम' व 'अहले बैत' नाम से जलसा हुआ। जिसमें हज़रत सैयदना अमीर-ए-मुआविया रदियल्लाहु अन्हु को शिद्दत से याद किया गया। 

अध्यक्षता करते हुए मुफ़्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि सहाबी-ए-रसूल अमीरुल मोमिनीन हज़रत मुआविया सच्चे आशिक-ए-रसूल थे। आप कातिब-ए-वही थे। आप दीन-ए-इस्लाम के पहले बादशाह थे। आपको अहले बैत से बहुत मोहब्बत थी। रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आपसे बहुत मोहब्बत करते थे। आप मोमिनों के मामू भी हैं।

मुख्य वक्ता सुब्हानिया जामा मस्जिद तकिया कवलदह के इमाम मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि दूसरे खलीफा हज़रत सैयदना उमर फ़ारूक़ ने हज़रत अमीर-ए-मुआविया को दमिश्क़ का गवर्नर मुक़र्रर किया। तीसरे खलीफा हज़रत सैयदना उस्मान के ज़माने में आप को सीरिया के पूरे इलाक़े का हाकिम बना दिया गया। हज़रत अमीर-ए-मुआविया और हज़रत सैयदना इमाम हसन में समझौता हुआ और उसके बाद हज़रत मुआविया बा-क़ायदा तमाम इस्लामी मुल्क के खलीफा क़रार दिए गए। हज़रत मुआविया ने जालिम बादशाहों के तमाम खतरों को ध्यान में रखकर समंदरी फौज़ तैयार की। सैकड़ों जंगी नावें तैयार करायीं। थल सेना को पहले से ज़्यादा मज़बूत किया। मौसम के हिसाब से भी फौज़े तैयार की। कई मुल्क जीत लिए गए। इस्लामी हुकुमत का रक़बा बहुत फैल गया। कुस्तुन्तुनिया पर समुद्री हमला किया गया। इस हमले ने कुस्तुन्तुनिया (क़ैसर) की रही सही हिम्मत तोड़ दी ।

विशिष्ट वक्ता मौलाना मो.  रियाजुद्दीन क़ादरी ने कहा कि हज़रत मुआविया के ज़माने में पूरी रियासत में सुख-शान्ति रही। नए-नए इलाक़ों पर विजय भी मिली। उन नए इलाक़ों में एक उत्‍तरी अफ्रीका है। उत्‍तरी अफ्रीका को उस ज़माने के मशहूर सिपहसालार ‘हज़रत उक़बा बिन नाफ़े’ ने फ़तह किया। हज़रत उक़बा बिन नाफ़े बडे़ उत्‍साही सिपहसालार थे। जब उन्‍होंने चढा़ई शुरू की तो कई सौ मील तक इलाक़े पर इलाक़े फ़तह करते चले गए, यहां तक कि समंदर सामने आ गया। यह अटलांटिक महासागर था। हज़रत उक़बा ने जब देखा कि उनके मार्ग समंदर में है तो उन्‍होंने अपना घोडा़ समंदर में दौडा़ दिया और जोश में दूर तक चले गए फिर तलवार उठाकर कहा कि ऐ अल्लाह! अगर यह समंदर बाधक न होता तो मैं दुनिया के आखिरी किनारे तक तेरा नाम बुलन्‍द करता हुआ चला जाता।

विशिष्ट वक्ता कारी मो.  अफजल बरकाती ने कहा कि हज़रत मुआविया का स्‍वभाव इतना अच्छा था कि वे किसी के साथ कठोरता से पेश नहीं आते थे, लोग उन्‍हें उनके मुहं पर भी बुरा-भला कह जाते थे। वे अपने विरोधियों को भी इनाम और सम्‍मान देकर ख़ुश रखते थे। हज़रत सैयदना इमाम हसन, हज़रत सैयदना इमाम हुसैन और उनके ख़ानदान वालों के साथ उनका व्‍यवहार बहुत अच्‍छा था और बहुत तोहफे देते थे। आपके ज़माने में जनकल्‍याण के बहुत काम हुए। आपने शाम (सीरिया) के शहर दमिश्‍क़ को राजधानी बनाया। यह शहर मदीना और कूफ़ा के बाद इस्‍लामी ख़िलाफ़त की तीसरी राजधानी था। आपका विसाल 22 रजब 60 हिजरी में हुआ। आपका मजार दमिश्‍क़ (सीरिया) में है।

कुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफिज रहमत अली निज़ामी ने की। संचालन कारी मो. अनस रज़वी ने किया। नात व मनकबत कासिद रज़ा, अफरोज क़ादरी, मो. आरिफ ने पेश की। अंत में सलातो-सलाम सलाम पढ़कर मुल्क में आमनो शांति व भाईचारे की दुआ मांगी गई। गौसे आज़म फाउंडेशन की ओर से शीरीनी बांटी गई। मौलाना मोहम्मद अहमद, मुफ़्ती मुनव्वर रज़ा, कारी शराफत हुसैन, हाफिज नज़रे आलम, हाफिज रेयाज अहमद, मोहम्मद फैयाज,  मौलाना इदरीस, हाफिज आफताब, मौलाना इसहाक, हाफिज शेर नबी, मौलाना मकसूद आलम, अली अहमद अत्तारी, हाफिज अजीम अहमद, कारी खैरुलवरा, मौलाना दानिश, मौलाना सद्दाम हुसैन, हाफिज महमूद रज़ा, कारी आमिर हुसैन, आदिल अमीन,  सैयद हुसैन अहमद, सैयद नदीम अहमद, यासीन खान, अफ़ज़ल खान, समीर अली, अली गज़नफर शाह, नूर मोहम्मद दानिश, जैद मुस्तफाई, नाज़िम, सैफ, शहनवाज, आज़म, कारी हमदम निज़ामी आदि ने शिरकत की।

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