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मुहर्रम की पहली तारीख़ आज, नये इस्लामी साल का आगाज

 


गोरखपुर, उत्तर प्रदेश माहे मुहर्रम की पहली तारीख़ है। पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व उनके साथियों द्वारा दी गई अज़ीम कुर्बानी की याद ताजा हो गई है। शनिवार की शाम से नये इस्लामी साल यानी 1444 हिजरी का आगाज हो गया। उलमा किराम ने मस्जिदों में 'जिक्रे शोह-दाए-कर्बला' महफिल में हज़रत सैयदना इमाम हुसैन व उनके साथियों की फज़ीलत बयान की। माहे मुहर्रम का चांद होते ही रात की नमाज़ के बाद मुस्लिम बाहुल्य मोहल्लों में चहल पहल बढ़ गई। फातिहा ख्वानी हुई।


मस्जिद फैजाने इश्के रसूल अब्दुल्लाह नगर, मस्जिद गुलशने कादरिया असुरन व बेनीगंज ईदगाह रोड मस्जिद में दस दिवसीय 'जिक्रे शहीदे आज़म' महफिल के पहले दिन शनिवार को मुफ्ती-ए-शहर अख़्तर हुसैन मन्नानी, हाफिज शाकिर अली निजामी, कारी मो. शाबान बरकाती ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हुसैन सन् चार हिज़री को मदीना में पैदा हुए। आपकी मां का नाम हज़रत सैयदा फातिमा ज़हरा व पिता का नाम हजरत सैयदना अली है। जब पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत हुसैन के पैदा होने की खबर सुनी तो फौरन तशरीफ लाए। आपने दाएं कान में अज़ान दी और बाएं कान में इकामत पढ़कर इमाम हुसैन के मुंह में अपना लुआबे दहन डाला और दुआएं दीं, फिर आपका नाम हुसैन रखा। सातवें दिन अकीका करके हज़रत हुसैन के बालों के हमवज़न चांदी खैरात करने का हुक्म दिया। आपके अकीके में दो मेढ़े जिब्ह किए गए।


मदरसा मजहरूल उलूम घोसीपुरवा परिसर व मदरसा अहले सुन्नत मदीना तुर रसूल अहमदनगर चक्शा में मौलाना मो. सैफ, मौलाना शादाब अहमद, मौलाना दानिश, मौलाना जाहिद मिस्बाही, कारी मो. तनवीर व रईसुल कादरी आदि ने कहा कि जब हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की उम्र सात साल की थी तब पैगंबर-ए-इस्लाम ने पर्दा (इंतकाल) फरमाया। जब अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर की खिलाफत शुरु हुई तो आप सवा दस बरस के थे। अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उस्माने गनी के शासन में पूरे जवान हो चुके थे। सन् तीस हिज़री में तबरिस्तान की जंग में शरीक हुए। अपने पिता अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना अली के शासन में जंगे जुमल व जंगे सिफ़्फीन में शरीक हुए। आप बहुत बहादुर थे। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान, तरक्की व भाईचारे की दुआ मांगी गई।

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