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दीन-ए-इस्लाम में इल्म हासिल करने को कर्तव्य करार दिया गया है कारी आबिद UP


गोरखपुर, उत्तर प्रदेश अकबरी जामा मस्जिद अहमदनगर में दीनी महफिल सजी। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात-ए-पाक मोहम्मद क़ासिद इस्माइली ने पेश की। अवाम के सवाल का जवाब क़ुरआन व हदीस की रोशनी में उलेमा-ए-किराम ने दिया।

मस्जिद के इमाम कारी आबिद अली निज़ामी ने कहा कि नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम और औलिया अल्लाह के दुनिया में आने का मकसद यही था कि इंसान, इंसानों जैसी ज़िन्दगी गुजारने का कानून पा जाए। मोहब्बत, उल्फत और आपस में भाईचारगी का माहौल बाकी रखकर एक अल्लाह की इबादत कर उसके करीबी बन जाएं, ताकि इबादतों की वजह से दुनिया भी कामयाब हो जाए और आखिरत भी। दीन-ए-इस्लाम तरक्कीयाफ्ता मजहब है। यूएनओ के चार्टर में इल्म हासिल करने को अधिकार कहा गया है, जबकि दीन-ए-इस्लाम में इल्म हासिल करने को कर्तव्य करार दिया गया है जिससे साफ पता चलता है कि दीन-ए-इस्लाम इल्म पर ज्यादा ध्यान देता है। जाहिल और पढ़े लिखे लोगों मे फर्क ज़िन्दा और मुर्दा के समान है।

कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि मुलसमानों ने हर दौर में तालीम के हर मैदान में अपना परचम बुलंद रखा है। इसके हर गोशे को अपनी नाकाबिले फरामोश ख़िदमात से मुनव्वर किया है। ज़रूरत इस बात की है कि हम अपना खोया हुआ वकार दोबारा हासिल करें, जिसके लिए हमें अपना रिश्ता क़ुरआन व हदीस से मज़बूती के साथ जोड़ कर दूसरे उलूम में भी सबकत हासिल करनी होगीअंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो सलामती की दुआ मांग शीरीनी बांटी गई। महफिल में अली हसन निज़ामी, अमन अली, साजिद अली, उस्मान अहमद, सज्जाद अहमद, मो. इश्तियाक, मो. अनीस आदि ने शिरकत की



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