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अवैध कोयले के परिचालन, संग्रहण एवं यातायात के लिए जिम्मेदार कौन

 


धनबाद जिला जिसे विश्व पटल पर कोयले के लिए जाना जाता है, पर पिछले कुछ वर्षों से हो रही कोयले की चोरी से अन्य राज्य में खुशियाँ और झारखण्ड के धनबाद जिला में मातम सा माहौल होता जा रहा है।

अवैध कोयले के कारोबारी पुरे जिले में पाँच प्रतिशत लोग हैँ, जो इस धंधे से महीने के करोड़ों रुपया कमा कर दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहे हैँ और अन्य लोग धूल, प्रदुषण, कैंसर, आँख के रोगी, लिवर इन्फेक्शन आदि रोग से ग्रसित हो रहे है। समाज के सफेद पोश जनप्रतिनिधि क्यों खामोश है? इसी वर्ष चौक - चौराहे पर गाड़ी पकड़ने का कार्य कर रहे थे, क्या अब मुँह और जेब दोनों भर दिया गया, क्या? जिला के मुखिया उपायुक्त, प्रशासनिक अधिकारी, सर्किल ऑफिसर, एसडीपीओ आदि भी कोयले के अवैध खनन, यातायात, संग्रहण को लेकर अपनी चुप्पी बनाए हुए हैँ, जिससे ये आमलोगों में बेहम हो रहा है इनकी मिलीभगत को लेकर। आमजनता कह रही है कि पुलिस को जानकारी दिए बिना एक चोर मंदिर के बाहर से चप्पल चोरी नहीं कर सकता तो अवैध कोयले का काफिला सडक से गुजरता है और प्रशासनिक अधिकारी बेखबर हैँ, हो नहीं सकता। फिलहाल धनबाद जिले के बलियापुर इलाके से अवैध कोयले का काफिला तिसरा थाना, घनुआडीह, मुकुंदा क्षेत्र से कोयला मोटरसाइकिल एवं साइकिल से बलियापुर के बिभिन्न क्षेत्रों जैसे कुस्बेरिया, कुशमातांड, पहाड़पुर, परसबनिया, सीधाबनी, सुरुँगा, लालाडीह आदि जगहों पर संग्रहित कर छोटे एवं बड़े गाड़ियों से गोविंदपुर भट्ठा से लेकर बंगाल, बिहार एवं उत्तरप्रदेश तक खपाते हैँ।

उपरोक्त सभी जगहों की जानकारी स्थानीय थानों एवं एसडीपीओ अभिषेक कुमार को है। बराबर खदानों में अवैध मायनिंग होना, चौल धंसना, अवैध मुहनों को भरना आदि खबर आती रहती है, उसके वाबजूद अवैध कोयले की मायनिंग, यातायात, संग्रहण आदि कुछ भी रुकने का नाम नहीं ले रहा, क्यों? स्पष्ट है कि अवैध कार्य करनेवालों के मुखबिर, सरपरसत, शुभचिंतक आदि खुद पुलिस विभाग के लोग ही हैँ। अर्थात जब सैंया भये कोतवाल, फिर डर काहे का।

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