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भोजन कर चुके लाभार्थी को अपने सामने ही खिलाएं फाइलेरिया की दवा

 


संतकबीरनगर, जिले को फाइलेरिया से मुक्‍त कराए जाने के लिए मई माह में प्रस्तावित एडिमिनिस्ट्रेशन (एमडीए) अभियान को सुचारु रुप से सम्‍पन्‍न कराने के लिए जिले के विभिन्‍न ब्‍लाकों पर अभियान में लगाए गए आशा कार्यकर्ताओं तथा आशा संगिनी व अन्‍य स्‍टाफ के लिए प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। इस दौरान प्रशि‍क्षकों ने आशा कार्यकर्ताओं को यह सिखाया कि किसी भी व्‍यक्ति को फाइलेरिया की दवा खिलाएं तो खाली पेट कतई न खिलाएं । इसके साथ ही उसे खाने के लिए दवा न दें बल्कि अपने सामने ही उसे दवा खिलाएं तथा तब तक इन्‍तजार करें जब तक वह दवा को निगल न जाए।


सामुदायिक स्‍वास्‍थ्‍य केन्‍द्र खलीलाबाद में प्रशिक्षण देते हुए पाथ संस्‍था के प्रतिनिधि डॉ अनिकेत ने कहा कि रोग के शुरू होने पर फाइलेरिया की पहचान आसान नहीं है एवं इस बीमारी के लक्षण बीमारी के परजीवी माइक्रोफाइलेरिया  के शरीर में प्रवेश के कई वर्षों बाद दिखाई देते हैं जो हाथी पांव, हाइड्रोसील का यूरिया आदि के रूप में प्रकट होते हैं l हाथी पांव का कोई इलाज नहीं है l लिंफेटिक फाइलेरियासिस को ही आम बोलचाल की भाषा में फाइलेरिया कहा जाता है।


बीपीएम महेन्‍द्र त्रिपाठी ने बताया कि आमतौर पर फाइलेरिया के कोई लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते, लेकिन बुखार, बदन में खुजली और पुरुषों के जननांग और उसके आस-पास दर्द व सूजन की समस्या दिखाई देती है। इसके अलावा पैरों और हाथों में सूजन, हाथी पांव और हाइड्रोसिल (अंडकोषों की सूजन) भी फाइलेरिया के लक्षण हैं। चूंकि इस बीमारी में हाथ और पैर हाथी के पांव जितने सूज जाते हैं इसलिए इस बीमारी को हाथीपांव कहा जाता है फाइलेरिया न सिर्फ व्यक्ति को दिव्यांग बना देता है बल्कि इससे मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।


19 लाख लोगों को खिलानी है दवा


जिला सर्विलांस अधिकारी डॉ आर पी मौर्या ने बताया कि जिले में कुल 19 लाख लोगों को फाइलेरिया की दवा खिलानी है। इसके लिए कार्ययोजना निधारित कर ली गयी है। इसके आधार पर प्रशिक्षण देने के साथ ही अभियान में लगे लोगों को लॉजिस्टिक का वितरण भी किया जा रहा है। अभियान की तैयारियां पूरी कर ली गयी हैं।


फाइलेरिया के कारण


डॉ अनिकेत के मुताबिक यह बीमारी मच्छरों द्वारा फैलती है, खासकर परजीवी क्यूलेक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के जरिए। जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रस्त व्यक्ति को काटता है तो वह संक्रमित हो जाता है। फिर जब यह मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो फाइलेरिया के कीटाणु रक्त के जरिए उसके शरीर में प्रवेश कर उसे भी फाइलेरिया से ग्रसित कर देते हैं लेकिन ज्यादातर संक्रमण अज्ञात या मौन रहते हैं और लंबे समय बाद इनका पता चल पाता है। इस बीमारी का कारगर इलाज नहीं है। इसकी रोकथाम ही इसका समाधान है।


दो साल से उपर आयु के लोगों को ही देनी है दवा


जिला मलेरिया अधिकारी राम सिंह ने कहा कि जिस भी व्‍यक्ति को दवा देनी है  उसकी आयु दो वर्ष से कम न हो । दवा देते समय ध्यान रखें कि लाभार्थी गर्भवती न हो या फिर किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित न हो। इन सारी बातों को पूरी तरह ध्‍यान देना होगा। फाइलेरिया की डोज दो साल से 5 साल के बच्‍चों के लिए 100 मिलीग्राम की एक गोली, 6 साल से 14 साल तक के बच्‍चों के लिए दो गोलियां व 15 साल से अधिक आयु के लोगों के लिए तीन गोलियों की खुराक तय की गयी है।


पांच साल तक लगातार दवा खाकर बच सकते हैं रोग से


फाइलेरिया दुनिया की दूसरे नंबर की ऐसी बीमारी है जो बड़े पैमाने पर लोगों को दिव्यांग बना रही है। यह जान तो नहीं लेती है, लेकिन जिंदा आदमी को मृत के समान बना देती है। इस बीमारी को हाथी पांव के नाम से भी जाना जाता है। साल में एक बार पांच साल तक अगर कोई व्यक्ति फाइलेरिया रोधी दवा खा ले तो उसे फाइलेरिया नहीं होगा ।


फाइलेरिया से बचाव


• फाइलेरिया चूंकि मच्छर के काटने से फैलता है, इसलिए बेहतर है कि मच्छरों से बचाव किया जाए। इसके लिए घर के आस-पास व अंदर साफ-सफाई रखें

• पानी जमा न होने दें और समय-समय पर कीटनाशक का छिड़काव करें। फुल आस्तीन के कपड़े पहनकर रहें।

• सोते वक्त हाथों और पैरों पर व अन्य खुले भागों पर सरसों या नीम का तेल लगा लें

• हाथ या पैर में कही चोट लगी हो या घाव हो तो फिर उसे साफ रखें। साबुन से धोएं और फिर पानी सुखाकर दवाई लगा लें

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