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हिजाब इस्लाम का अहम हिस्सा, कोर्ट का फैसला निराशाजनक

 उत्तर प्रदेश कर्नाटक हाईकोर्ट ने शिक्षण संस्थानों



गोरखपुर, उत्तर प्रदेश कर्नाटक हाईकोर्ट ने शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने को लेकर एक महत्वपूर्ण मामले में फ़ैसला सुनाते हुए छात्राओं की याचिका ख़ारिज कर दी है।संवाददाता ने इस फ़ैसले पर कुछ मुस्लिम महिलाओं व धर्मगुरुओं से बात की है।

तिवारीपुर की शिक्षिका गौसिया सुम्बुल ने कहा कि पर्दा (हिजाब) दीन-ए-इस्लाम का अहम हिस्सा था, है और कयामत तक रहेगा। कर्नाटक हाइकोर्ट का हिजाब बैन को जारी रखने का फ़ैसला मायूस करने वाला है। एक ओर हम महिलाओं को सशक्त करने की बात करते हैं फिर भी हम उन्हें एक साधारण विकल्प के अधिकार से वंचित कर रहे हैं। यह सिर्फ़ धर्म का नहीं बल्कि चुनने की स्वतंत्रता का भी मामला है।

खोखर टोला की कर्मचारी अज़रा जमाल ने कहा कि पर्दा (हिजाब) हमारी आन, बान और शान है। यह हमारा हक़ और अधिकार है। हाईकोर्ट का फैसला निराशाजनक है। संविधान की प्रस्तावना कहती है कि हर व्यक्ति को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास और इबादत की स्वतंत्रता है अगर मेरी आस्था में सिर ढ़कना आवश्यक है तो यह मेरा व्यक्त करने का अधिकार है। एक धर्मनिष्ठ मुसलमान के लिए हिजाब भी एक इबादत है।याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला लिया है। हमें सुप्रीम कोर्ट पर पूरा भरोसा है कि वह हिजाब के पक्ष में फैसला देगा व हमें न्याय मिलेगा।


गृहणी फरहा दीबा ने कहा कि मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दा (हिजाब) का स्पष्ट आदेश शरीअत में दिया हुआ है। साढ़े चौदह सौ सालों से मुस्लिम महिलाएं पर्दा कर रही हैं। पर्दा मुस्लिम महिलाओं के विकास में न बाधक था, न है और न रहेगा। भारतीय संविधान हमें धार्मिक आज़ादी से जीवन जीने का अधिकार देता है। हिजाब के मसले पर मुस्लिम महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है जो उचित नहीं है। कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से बहुत निराशा हुई है। हिजाब पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वक़्त से इस्लाम का अहम हिस्सा रहा है। किसी लड़की व महिला को अब ये भी अधिकार नहीं है कि वह क्या पहने और क्या नहीं पहने? 

मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी  (मुफ्ती-ए-शहर) ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में मुस्लिम महिलाओं के लिए पर्दे का हुक्म क़ुरआन व हदीस में स्पष्ट तौर पर दिया हुआ है। पर्दा अल्लाह व पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म व इबादत में शुमार है। कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले से दिली तकलीफ़ हुई है। पर्दे में रहकर मुस्लिम महिलाएं कामयाबी की इबारत लिख रही हैं। हर क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे रही है। पर्दा या हिजाब को मुद्दा बनाना गैर जरूरी व अफसोसनाक है। भारतीय संविधान में सभी धर्मों के लिए धार्मिक आज़ादी का पालन करने का स्पष्ट उल्लेख है।

रसूलपुर के मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि कोर्ट को अपने फैसले पर नजरे सानी करना चाहिए। कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहीं यह फैसला जल्दबाजी में तो नहीं दिया? क्योंकि क़ुरआन की आयतों से और हदीस की बहुत सी किताबों से यह साफ जाहिर है कि महिलाओं को हिजाब लगाना इस्लाम का एक अहम हिस्सा है। एक नजरिए से यह हिजाब का मसला मुस्लिम पर्सनल लॉ से भी जुड़ा हुआ है।मुस्लिम पर्सनल लॉ के ताल्लुक से संविधान ने यह इजाजत दी है कि कोई भी 'मुस्लिम पर्सनल लॉ' के मामले छेड़छाड़ नहीं करेगा। तो मेरी अपील है कि कर्नाटक हाई कोर्ट को इस फैसले पर दोबारा गौर करना चाहिए ताकि फंडामेंटल राइट्स और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कहीं से भी कोई मुखालफत न हो सके।

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