दीन-ए-इस्लाम ने हमेशा अमन की बात की है - हनीफ़ रज़ा क़ादरी
शाहिदाबाद में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा।
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात-ए-पाक पेश की गई। संचालन हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी ने किया।
मुख्य अतिथि मौलाना हनीफ़ रज़ा क़ादरी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम ने चौदह सौ सालों से अमन की बात की है। मक्का शरीफ जीतने के बाद पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सबको माफ करके यह दिखा दिया कि दीन-ए-इस्लाम रहमत का पैरोकार है। पैग़ंबर-ए-आज़म ने आख़िरी खुतबे में बता दिया कि बेहतरीन इंसान वह है जो ईमान वाला होने के साथ-साथ परहेजगार भी है। हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां फरमाते हैं कि आलिमे रब्बानी का सो जाना जाहिल की इबादत से बेहतर है। हज़रत सैयदना अली रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि दौलत फना हो जाएगी लेकिन इल्म एक ऐसी दौलत है जो कभी खत्म नहीं होगी। शैख़ सादी शिराजी अलैहिर्रहमां फरमाते हैं कि इल्म के लिए शम्मां की तरह पिघल जाना चाहिए। जिस तरह शम्मां रौशनी देने के लिए पिघलती है। ऐसे तू भी पिघल जा इल्म के लिए। इल्म के बगैर अल्लाह व रसूल को पहचानना मुमकिन नहीं है।अंत में सलातो-सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। शीरीनी तकसीम की गई। इस मौके पर मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी, हाफ़िज़ आरिफ रज़ा, मौलाना शाबान रज़ा, बरकत अली, मुर्तजा हुसैन, सुब्हान अली, हामिद अली, मुहर्रम अली, मो. सैफ़, हम्माद रज़ा, जौहर अली, जलालुद्दीन, युनूस रज़ा आदि ने शिरकत की।
मुख्य अतिथि मौलाना हनीफ़ रज़ा क़ादरी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम ने चौदह सौ सालों से अमन की बात की है। मक्का शरीफ जीतने के बाद पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सबको माफ करके यह दिखा दिया कि दीन-ए-इस्लाम रहमत का पैरोकार है। पैग़ंबर-ए-आज़म ने आख़िरी खुतबे में बता दिया कि बेहतरीन इंसान वह है जो ईमान वाला होने के साथ-साथ परहेजगार भी है। हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां फरमाते हैं कि आलिमे रब्बानी का सो जाना जाहिल की इबादत से बेहतर है। हज़रत सैयदना अली रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि दौलत फना हो जाएगी लेकिन इल्म एक ऐसी दौलत है जो कभी खत्म नहीं होगी। शैख़ सादी शिराजी अलैहिर्रहमां फरमाते हैं कि इल्म के लिए शम्मां की तरह पिघल जाना चाहिए। जिस तरह शम्मां रौशनी देने के लिए पिघलती है। ऐसे तू भी पिघल जा इल्म के लिए। इल्म के बगैर अल्लाह व रसूल को पहचानना मुमकिन नहीं है।अंत में सलातो-सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। शीरीनी तकसीम की गई। इस मौके पर मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी, हाफ़िज़ आरिफ रज़ा, मौलाना शाबान रज़ा, बरकत अली, मुर्तजा हुसैन, सुब्हान अली, हामिद अली, मुहर्रम अली, मो. सैफ़, हम्माद रज़ा, जौहर अली, जलालुद्दीन, युनूस रज़ा आदि ने शिरकत की।
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