रसूल-ए-पाक की मोहब्बत असल ईमान है - नायब काजी kg
शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में सजी दीनी महफिल।
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में गुरुवार को दीनी महफिल सजी। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात-ए-पाक पेश की गई। सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना सलमान फारसी रदियल्लाहु अन्हु, इमाम अहमद इब्ने नसाई, हज़रत ख़्वाजा मालिक बिन दीनार, हज़रत शाह अब्दुर्रहीम मुहद्दिस देहलवी, हज़रत शाह अल्लामा फज़ले हक़ खैराबादी, हज़रत अल्लामा मौलाना अरशदुल क़ादरी, मुफ़स्सिरे आज़म मौलाना इब्राहीम रज़ा खां अलैहिर्रहमां की रूह को इसाले सवाब किया गया। अवाम के सवालों का जवाब क़ुरआन व हदीस की रोशनी में दिया गया।
मुख्य वक्ता मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी (नायब काजी) ने कहा कि रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पूरी कायनात के लिए रहमत हैं और मुसलमानों पर तो बहुत मेहरबान हैं। रसूल-ए-पाक की मोहब्बत असल ईमान है। जब तक रसूल-ए-पाक की मोहब्बत मां-बाप, औलाद और सारी दुनिया से ज्यादा न हो आदमी मुसलमान हो ही नहीं सकता। रसूल-ए-पाक की ताजीम और तौकीर अब भी उसी तरह फर्जे ऐन है जिस तरह उस वक्त थी कि जब रसूल-ए-पाक हमारी जाहिरी आंखों के सामने थे। हमें चाहिए कि हम रसूल-ए-पाक की पैरवी करें। दीन-ए-इस्लाम का पैगाम सारी इंसानियत के लिए है। दीन-ए-इस्लाम कहता है कि हमें एक अल्लाह की इबादत करनी चाहिए जो हम सबका मालिक है। दीन-ए-इस्लाम कहता है कि ऐ मुसलमानों जब नमाज पढ़ो तो एक दूसरे से कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहो क्योंकि तुम सब आपस मे बराबर हो तुम में से कोई छोटा या बड़ा नहीं है, लेकिन जो परहेजगार व इबादतगुजार है उसका रुतबा बुलंद है।
विशिष्ट वक्ता कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने कहा कि क़ुरआन-ए-पाक दुनिया के हर इंसान के लिए हर समाज के लिए सही रास्ते पर चलने का और एक बेहतरीन ज़िन्दगी जीने का रास्ता है। हर इंसान को क़ुरआन पढ़ना चाहिए और उसे समझना चाहिए। रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि ऐ लोगों! याद रखो, मेरे बाद कोई रसूल नहीं और तुम्हारे बाद कोई उम्मत नहीं। अत: अल्लाह की इबादत करना। प्रतिदिन पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ना। रमज़ान के रोज़े रखना, खुशी-खुशी अपने माल की ज़कात देना। हज करना और अपने हाकिमों का आज्ञा पालन करना। ऐसा करोगे तो अल्लाह की जन्नत में दाख़िल होगे।
सदारत करते हुए मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ आफताब ने कहा कि हर दुआ उस वक़्त तक पर्दा-ए-हिजाब (छुपी) में रहती है जब तक रसूल-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम और आपके अहले बैत (रसूल-ए-पाक के घर वाले) पर दरूद ना भेजा जाए। जो शख्स दरूदो सलाम को ही अपना वजीफ़ा बना लेता है अल्लाह उसके दुनिया और आख़िरत के काम अपने ज़िम्मे ले लेता है। दरूदो सलाम मजलिसों की ज़ीनत है। दरूद शरीफ़ तंगदस्ती को दूर करता है। दरूदो सलाम से रसूल-ए-पाक की मोहब्बत का जज़्बा और बढ़ता है। दरूदो सलाम पढ़ने वाले को किसी की मुहताजी नहीं होती।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में खुशहाली, तरक्की व अमनो अमान की दुआ मांगी गई। अकीदतमंदों में शीरीनी बांटी गई। महफिल में अमान अत्तारी, अयान, जलालुद्दीन, ओबैद रज़ा, नसीम, अनवार रज़ा, मशारिब हबीब, जफर, अरमान आदि ने शिरकत की।
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