हकीम अजमल खान स्वतंत्रता सेनानी,देश प्रेमी, राष्ट्र भक्त और मुसलमानों के बीच आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे - मुफ्ती सलीम नूरी - ADAP News - अपना देश, अपना प्रदेश!

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हकीम अजमल खान स्वतंत्रता सेनानी,देश प्रेमी, राष्ट्र भक्त और मुसलमानों के बीच आधुनिक शिक्षा के पक्षधर थे - मुफ्ती सलीम नूरी

 हकीम अजमल खान और उनका राष्ट्र प्रेम टाॅपिक पर मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम मे हुई एक विशेष पुरुस्कार निबंध प्रतियोगिता।

70 से अधिक आलिम,फाजिल छात्र हुए सम्मिलित



सेराज अहमद कुरैशी 

बरेली, उत्तर प्रदेशआला हज़रत के स्थापित कर्दा मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम दरगाह आला हजरत में भारत की आज़ादी में अहम भूमिका निभाने वाले मुस्लिम स्वतन्त्रा संग्रामियों के इतिहास की जानकारी देने के लिए हकीम अजमल खान और उनका राष्ट्र प्रेम टाॅपिक पर एक विशेष पुरुस्कार निबंध प्रतियोगिता आयोजित हुई। मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने बताया कि प्रतियोगिता में 70 से अधिक आलिम,फाजिल कोर्स कर रहे वरिष्ठ छात्रों ने भाग लिया। प्रथम स्थान मदरसा मंज़र-ए-इस्लाम के छात्र मोहम्मद फैज ने और दूसरा स्थान मदरसा इस्लामिया इज्जत नगर के छात्र मोहम्मद अलीम और तीसरा स्थान मंजर-ए-इस्लाम के छात्र उवैस ने प्राप्त किया सभी छात्रो को पुरुस्कार के रुप में आला हज़रत की पुस्तके भेंट की गईं। इस मौके पर  मदरसे के वरिष्ठ शिक्षक मुफ्ती मोहम्मद सलीम नूरी बरेलवी ने अपने संबोधन में कहा कि हकीम अजमल खान 11 फरवरी 1868 को दिल्ली में पैदा हुए थे। वे हमेशा भारतीय स्वतंत्रता,सांप्रदायिक सद्भाव के विकास और मुसलमानों के बीच आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के सामान्य उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए किसी भी तरह बलिदान देने को तैयार थे। हकीम अजमल खान एक प्रख्यात भारतीय यूनानी चिकित्सक के साथ बहुमुखी प्रतिभा, महान विद्वान,समाज सुधारक,प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और यूनानी चिकित्सा पद्धति में वैज्ञानिक अनुसंधान के संस्थापक थे।

     मुफ्ती अख्तर और मुफ्ती मोइनुद्दीन ने कहा कि1917 में मुस्लिम लीग छोड़ने के बाद गांधी जी के साथ उनकी गहरी दोस्ती थी। जिसने उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। वह दिसंबर 1918 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दिल्ली सत्र के लिए स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। देश की मोहब्बत में उन्होंने ब्रिटिश गवरमेंट द्वारा दी जाने वाली मानद उपाधियों को ठुकरा दिया। जैसे कि  कैसर-ए-हिंद और हाज़िकुल-मुल्क।  इसलिए वह आजादी की जंग लडने वालों के लिए एक आदर्श बन गए। 1921 में उन्होंने अहमदाबाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक सत्र की अध्यक्षता भी की।  वह जामिया मिलिया इस्लामिया राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय के पहले चांसलर रहे। जो उन छात्रों के लिए स्थापित किया गया था जिन्होंने राष्ट्रवादी विचारधाराओं को साझा किया और आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा के विचार को पोषित किया। उन्होंने सितंबर 1924 में अपने घर में हिंदू और मुस्लिम नेताओं के साथ एक सम्मेलन की मेजबानी करते हुए हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शांतिपूर्ण संबंधों और आपसी सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत की। 1925 में खराब स्वास्थ्य के कारण सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त होने के बावजूद हकीम अजमल खान ने 29 दिसंबर 1927 को अपनी मृत्यु तक हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव विकसित करने के लिए कड़ी मेहनत की।

      मास्टर कमाल ने कहा कि वर्तमान समय में भारतीय मुस्लिम समुदाय को हकीम अजमल जैसे महान व्यक्तित्व की सख्त जरूरत है जो मुसलमानों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली की ओर ले जा सके और मजबूत राष्ट्रवादी भावनाओं को विकसित करने में मदद कर सके।

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