कर्मचारियों की आवाज दबाने की कोशिश
लखनऊ राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जे एन तिवारी ने आज एक प्रेस विज्ञप्ति अवगत कराया है कि सरकार राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के 24 दिसंबर को विधानसभा पर धरना प्रदर्शन के कार्यक्रम से बौखला गई है। कर्मचारियों की जायज मांगों पर निर्णय लेने की बजाय कर्मचारियों पर दंडात्मक कार्यवाही पर उतर आई है। सरकार के कार्मिक विभाग ने कर्मचारियों के ऊपर एस्मा लागू कर दिया है ।विधानसभा के आस पास धरना प्रदर्शन पर भी सख्त पाबंदी लगा दी गई है। लोकतंत्र में कर्मचारियों की आवाज बंद करने के लिए दंडात्मक कार्यवाही की जा रही है।
जे एन तिवारी ने आरोप लगाया है कि आउटसोर्स कर्मचारियों, संविदा कर्मचारियों का शोषण दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। चकबंदी अधिकारी , विपणन निरीक्षक, चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग के विभिन्न वर्गों के कर्मचारियों की वेतन विसंगतियों, समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत राजकीय आश्रम पद्धति विद्यालयों में कार्यरत संविदा शिक्षकों सातवें वेतन आयोग का लाभ देने, पर मुख्य सचिव समिति कुंडली मारकर बैठी हुई है ।नई पेंशन योजना में भारत सरकार द्वारा जो संशोधन किए गए हैं वह भी लागू नहीं किया जा रहा है। विभागों में रिक्त पदों को भरने के बजाय आउट सोर्स पर कर्मचारी रखे जा रहे हैं ।आउटसोर्स कर्मचारियों का सेवा प्रदाता द्वारा मनमाने ढंग से शोषण किया जा रहा है तथा उनकी मजदूरी भी नहीं दी जा रही है। प्रदेश में लाखों की संख्या में कार्यरत आशा बहू से एक चिकित्सक से भी अधिक कार्य लिया जा रहा है लेकिन उनको ₹2200 का प्रोत्साहन भत्ता दिया जा रहा है ।महिला सशक्तिकरण में जब तक महिलाओं को आगे नहीं बढ़ाएंगे तब तक देश का सशक्तिकरण नहीं होगा, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार में महिलाओं के साथ जबरदस्त भेदभाव किया जा रहा है ।
जे एन तिवारी ने अवगत कराया है कि 24 दिसंबर का विधान भवन पर धरना प्रदर्शन होकर रहेगा। सरकार चाहे जितनी कोशिश कर ले, कर्मचारियों को जेल में डाल दे, लाठियां चलवा दे ,पानी की बौछारें चलवा दे, जो भी दंडात्मक कार्यवाही करना चाहे, सरकार के हाथ में है, सरकार कर ले, लेकिन लोकतांत्रिक आवाज दबाने की सरकार की कोशिश कर्मचारी बर्दाश्त नहीं करेगा तथा इसका जवाब आने वाले चुनाव में ईवीएम के माध्यम से देगा।
जे एन तिवारी ने अवगत कराया है कि राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के माध्यम से उनके साथ आशा बहुएं , रसोईया, चौकीदार, आंगनवाड़ी कार्यकत्री, पीआरडी जवान, पंचायतों में कार्यरत सफाई कर्मचारी, बेसिक शिक्षा परिषद के कर्मचारी, राजस्व विभाग के कर्मचारी, नगरीय परिवहन सेवा सहित अनेक ऐसे वर्गो के कर्मचारी जुड़े हैं जिनकी घुसपैठ ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर तक है तथा वे लोग एक बहुत बड़े वोट बैंक का डायवर्सन करने में सक्षम है ।राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद इन्ही कर्मचारियों की जायज मांगों को लेकर आंदोलन कर रही है। यदि सरकार विधान भवन पर नहीं जाने देगी तो लखनऊ में कई स्थानों पर धरना प्रदर्शन की स्थिति बन सकती है ,जिसकी जिम्मेदारी शासन प्रशासन की ही होगी।
उन्होंने मुख्यमंत्री जी को एक दर्जन पत्र लिखकर कर्मचारियों की समस्याओं पर समय देकर हस्तक्षेप का अनुरोध किया है, लेकिन मुख्यमंत्री मंत्री जी समय नहीं दे पाए हैं ।उन्होंने एक बार पुनः मुख्यमंत्री जी से अनुरोध किया है कि समय रहते कर्मचारियों की भी सुध ले लें ,उनकी उचित मांगों पर निर्णय करा दें अन्यथा प्रदेश के 18 लाख कर्मचारियों एवं उनके परिवारों का आक्रोश सरकार के लिए संभालना मुश्किल हो जाएगा
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